
हालांकि व्यापारियों ने 30 सितंबर की अवधि को 31 मार्च तक बढ़ाने की मांग की थी। लेकिन सरकार ने इसे 31 दिसंबर 2017 तक बढ़ाने का फैसला किया है। इसके बाद यह अवधि नहीं बढ़ाई जाएगी। इसके बाद जीएसटी लगाये जाने के पहले का एमआरपी वाला उत्पाद बाजार में नहीं बेचा जा सकेगा।
व्यापारियों की समस्या को लेकर कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से 30 सितंबर की अवधि को बढ़ाने का आग्रह किया था। जीएसटी लागू करते समय यह प्रावधान किया गया था कि 30 जून को जो भी माल, जिस पर एमआरपी लगाना अनिवार्य है, वह माल संशोधित एमआरपी के स्टिकर लगाकर 30 सितंबर तक ही बेचा जा सकेगा।
पैकेजिंग कमोडिटी एक्ट के अंतर्गत यह प्रावधान है कि जो भी माल पैकेज में बेचा जायेगा, उस पर अनिवार्य रूप से एमआरपी छपी होनी चाहिए। कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. सी. भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार देश में 30 जून से पहले का लगभग नौ लाख करोड़ रुपये का माल बाजार में था। जिसमें से लगभग छह लाख करोड़ रुपये का माल बाजार में अभी भी पड़ा है। इन सभी उत्पादों पर एमआरपी का स्टिकर लगा हुआ है।
निर्यातकों को मिली बैंक गारंटी की शर्त से छूट
सरकार ने छोटे निर्यातकों को भी राहत देते हुए वस्तु व सेवा निर्यात के लिए बैंक गारंटी देने के नियम से छूट दे दी है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय ने दी है। निर्यातकों की जीएसटी से संबंधित दिक्कतें सुलझाने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ निर्यातकों की मुलाकात के बाद यह फैसला किया गया है।
जीएसटी के तहत अगर निर्यातक बांड या लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलयूटी) देते हैं तो उन्हें आइजीएसटी का भुगतान करने से छूट दी गई है। वित्त मंत्रालय के एक बयान के अनुसार छोटे निर्यातकों को बांड के साथ आवश्यक बैंक गारंटी देने में दिक्कतें आ रही हैं। इसलिए निर्यातकों को बांड के बजाय एलयूटी जमा करने की अनुमति दी जाएगी। उन्हें कोई बैंक गारंटी नहीं देनी होगी