राकेश दुबे@प्रतिदिन। मीडिया की प्रतिबद्धता को लेकर दो बड़ी खबरें हैं एक देश की और एक विदेश की। दोनों मीडिया के आचरण से जुडी है। पहले विदेश की खबर “रनिंग कमेंट्री” नामक ब्लाग के जरिये माल्टा में पनामा पेपर्स करप्शन को उजागर करने वाली महिला जर्नलिस्ट डैफने कैरुआना गैलिजिया (53) की हत्या कर दी गई। उन्हें माल्टा के मोस्ता शहर में घर से कुछ ही दूर कार बम ब्लास्ट करके निशाना बनाया गया। गैलिजिया ने करप्शन का खुलासा करने वाले दस्तावेजों को दुनिया के सामने रखा। अमेरिकी अखबार पॉलिटिको ने गैलिजिया को 'वन-वुमन विकीलीक्स' का नाम दिया था। बता दें कि पनामा पेपर्स के जरिए 52 देशों का करप्शन उजागर किया गया था।जिसके फलस्वरूप मस्कट के पीएम को इस्तीफा देना पड़ा था।
डैफने ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि पीएम की पत्नी और उनके चीफ ऑफ स्टाफ कीथ शेंब्री भी पनामा की एक कंपनी के मालिक हैं। गैर कानूनी तरीके से पैसों के लेन-देन के लिए इस कंपनी का इस्तेमाल किया जाता है। डैफने के खुलासे से माल्टा में सरकार हिल गई थी। जोसेफ को इस्तीफा देना पड़ा।
दूसरी हमारे देश भारत की है, जहाँ DAVP ने 51 समाचार पत्रों के विज्ञापन दो माह के लिए रोक दिए हैं। यह कदम DAVP ने प्रेस काउन्सिल आफ इण्डिया के निर्णय के बाद किया है। इनमे से अधिकांश के विरुद्ध पेड़ न्यूज के मामले हैं। कुछ संगठन इन अखबारों की पैरवी में भी उतर आये हैं। इन 51 अखबारों में से 38 के विरुद्ध “पेड़ न्यूज़ “ के आरोप प्रमाणित हुए और प्रेस काउन्सिल ने निंदा की सजा दी। व्यवहारिक और व्यवसायिक दुर्व्यहार के मामले भी कम नहीं हैं। इन 51 में से 8 मध्यप्रदेश के हैं।
मृत पत्रकार डैफने के बेटे एक महत्वपूर्ण बात कही है। सिस्टम फेल होता है तो सबसे पहले जर्नलिस्ट मारा जाता है' डैफने के बेटे मैथ्यू भी जर्नलिस्ट हैं। भारत में भी सिस्टम के नाकामी से “पेड़ न्यूज” का चलन बड़ा है। राजनीतिक सिस्टम अपनी रक्षा अदालत में माध्यम से करता है “ पेड़ न्यूज” का आरोप सिद्ध होने के बाद भी मंत्री पद पर बने रहते हैं। पत्रकारों की नौकरी, तथ्य और “पेड न्यूज” के बीच चुनाव के दौरान फंस जाती है। अख़बार का मालिक वर्ग हमेशा सत्ता की सम्भावना के साथ खड़े होते है। खबर के साथ खड़े पत्रकार को तो रोज जीना-मरना होता है।
फिर से मैथ्यू का वाक्य "मेरी मां कानून और इसे तोड़ने वालों के बीच हमेशा खड़ी रहीं। इसलिए मारी गईं। जब सिस्टम फेल हो जाता है तो ऐसा ही होता है। ऐसे में आखिरी तक लड़ने वाला शख्स पत्रकार ही होता है... और सबसे पहले मारा जाने वाला भी पत्रकार ही होता है। परिणाम कुछ भी हो सकते हैं, व्यवसायिक प्रतिबद्धता सबसे बड़ी चीज है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।