भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकारी वकीलों की नियुक्तियों को लेकर गड़बड़ी का दावा किया गया है। आरटीआई कार्यकर्ता सकेंत साहू का कहना है कि सरकारी वकीलों की नियुक्तियों में नियमों का पालन नहीं किया गया। कई वकील तो ऐसे हैं जिन्होंने अपना बायोडाटा तक जमा नहीं कराया और उन्हे नियुक्ति दे दी गई जबकि कई ऐसे भी हैं जिनके पास निर्धारित 10 साल का अनुभव नहीं है। साहू ने सुप्रीम कोर्ट को शिकायत भेजी है। साथ ही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लेटर पिटीशन दायर की है। मामले का खुलासा ग्वालियर के पत्रकार श्री बलबीर सिंह ने किया है। बलवीर सिंह नई दुनिया में सेवाएं दे रहे हैं।
खुलासे में बताया गया है कि शिवराज सिंह सरकार ने इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर महाधिवक्ता कार्यालय में हुई इन नियुक्ति में उन नियमों को ताक पर रख दिया, जो 27 फरवरी 2013 में अच्छे अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए बनाए गए थे। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की तीनों बैंच में शासन की ओर से पैरवी करने के लिए 31 जुलाई 2017 को अतिरिक्त महाधिवक्ता, उप महाधिवक्ता, शासकीय अधिवक्ता, उप शासकीय अधिवक्ता के पद पर 140 अधिवक्ताओं की नियुक्तियां की गई हैं। इस बार इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर के महाधिवक्ता कार्यालय में तीन गुना पद बढ़ाए गए। वेतन भी तीन गुना बढ़ा दिया है।
नियुक्तियां होने के बाद आरटीआई कार्यकर्ता संकेत साहू ने महाधिवक्ता कार्यालय व विधि विभाग से अधिवक्ताओं की नियुक्ति को लेकर अपनाई प्रक्रिया व प्रमुख सचिव द्वारा लिखी गई नोटशीट की कॉपी प्राप्त की। इसमें प्रमुख सचिव खुद लिख रहे हैं कि जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर के कुछ अधिवक्ताओं के बायोडाटा व दस्तावेज अप्राप्त हैं। कुछ अधिवक्ताओं को दस साल का अनुभव नहीं है, लेकिन अनुभव वाले नियम को शिथिल किया गया है।
इन अधिवक्ताओं ने नहीं दिए बायोडाटा व दस्तावेज
जबलपुर में अक्षय नामदेव, गीतेश सिंह ठाकुर, सौरभ श्रीवास्तव ने बायाडोटा नहीं दिया। नम्रता अग्रवाल, अंकित अग्रवाल, मोहित नायक, शिवेन्द्र पांडेय, सौरभ श्रीवास्तव, विद्याशंकर मिश्रा की वकालत को दस साल पूरे नहीं हुए हैं।
इंदौर में मनोज द्विवेदी, अनिरुद्ध वाघमारे, मुकेश परवाल, सूरज शर्मा, अमित सिसौदिया, राजेश माली, भुवन देशमुख ने बायोडाटा नहीं दिया। कौष्तुभ पांडेय, अभिषेक सोनी, हेमंत शर्मा, विशाल सनोठिया को वकालत में दस साल पूरे नहीं हुए हैं।
ग्वालियर में बीके शर्मा के दस्तावेज नहीं हैं और नरेन्द्र किरार, अजय भार्गव, अवनीश सिंह ने बायोडाटा नहीं दिया है। अवनीश सिंह को वकालत में दस साल पूरे नहीं हुए।
ग्वालियर में नियुक्ति शासकीय अधिवक्ता पद पर 31 नामों की सिफारिश की गई, लेकिन जब नियुक्ति की लिस्ट जारी की गई, उसमें 7 नाम बढ़ा दिए गए। इनके दस्तावेज व बायोडाटा जमा नहीं हैं।
यह बनाए गए थे नियम
अतिरिक्त महाधिवक्ता, उप महाधिवक्ता, शासकीय व उप शासकीय अधिवक्ता पद पर जिस अधिवक्ता की नियुक्ति जानी है, उसको अपने 20 केसों की सूची बायोडाटा के साथ संलग्न करनी होगी, जो हाईकोर्ट में लड़े हों। दस्तावेज इंदौर, जबलपुर व ग्वालियर के महाधिवक्ता कार्यालय जमा करने होंगे। टीप के साथ महाधिवक्ता के पास भेजे जाएंगे।
महाधिवक्ता, अतिरिक्त महाधिवक्ता, उप महाधिवक्ता, शासकीय अधिवक्ता व उप शासकीय अधिवक्ता पद पर नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति को वकालत में 10 साल या उससे अधिक का अनुभव होना चाहिए। बायोडाटा में अनुभव का उल्लेख करना होगा।
महाधिवक्ता एक पद पर तीन नामों की अनुशंसा विधि विभाग को करेंगे। अनुशंसा किए जाने के साथ-साथ महाधिवक्ता को टीप लगानी होगी।
नियुक्त किए जा रहे अधिवक्ता के गुण-दोष, चरित्र, योग्यता, अनुभव व कार्य पर विचार करना होगा।
विधि विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव केडी खान ने 28 फरवरी 2013 को नियुक्तियों के संबंध में नियम बनाए थे और उनका प्रकाशन किया था। इसी के आधार पर अधिवक्ताओं की नियुक्ति की जानी थी।
महाधिवक्ता कार्यालय खुद को बताया आरटीआई से बाहर
महाधिवक्ता कार्यालयों में हुई नियुक्तियों की जानकारी के लिए सबसे पहले जबलपुर कार्यालय में संकेत साहू ने आरटीआई लगाई, लेकिन महाधिवक्ता कार्यालय ने जवाब दिया कि वह सूचना के अधिकार के तहत नहीं आता है। इसलिए जानकारी नहीं दी सकती है, लेकिन विधि विभाग के पास मौजूद दस्तावेजों की सत्यापित प्रति दे दी है।
इनका कहना है
नियुक्तियों के संबंध में जो कमियां थी, उन्हें नोटशीट पर उल्लेख कर दिया है। लिखे हुए शब्दों पर मैं मौखिक कुछ भी बोलना नहीं चाहता हूं।
एएम सक्सेना, प्रमुख सचिव विधि विभाग मप्र
नियुक्तियों में हुई धांधली को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की है। हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ में लेटर पिटीशन दायर की है। वर्ष 2017 में बनाए गए नियमों की अनदेखी की गई है।
सकेंत साहू, आरटीआई कार्यकर्ता