राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैसे तो यह स्वीकार नहीं किया जाता कि सरकार या भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई निर्देश लेती है या संघ कोई निर्देश देता है। इसके बावजूद संघ के निर्देश की प्रतिच्छाया भाजपा सरकार के निर्णयों पर साफ दिखती है। राष्ट्र हित की बात कहीं से भी आये स्वीकार होना चाहिए। इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना दिवस यानी विजयदशमी के अपने वार्षिक बौद्धिक संबोधन में सर संघचालक मोहन भागवत ने जो कुछ कहा है वह सरकार के लिए दिशा-निर्देश का आधार बने या न बने। इस पर बहस शुरू हुई है भाजपा के अंदर और बाहर भी।
श्री भागवत ने देश के समक्ष उपस्थित सारे ज्वलंत मुद्दों जैसे, गोरक्षा को धर्म से न जोड़ें और इसके नाम पर होने वाली हिंसा गलत है। डोकलाम विवाद को सम्मानजनक तरीके से निपटाने पर सरकार सराहना की। साथ ही कश्मीर में सुरक्षा बलों को पूरी आजादी देने की वकालत करते हुए कहा की सरकार के निर्णय से आतंकवाद की कमर टूटी है। रोहिंग्या मुद्दे पर भी उन्होंने संघ का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि उनको यहां रहने की अनुमति देने के बाद देश में रोजगार के अवसर कम होंगे एवं सुरक्षा जोखिम बढ़ेगा किंतु इनसे सबसे परे उन्होंने आर्थिक मोर्चे पर जो बातें कहीं उसमें पूरे संगठन परिवार और देश के बहुमत की सोच निहित है। इस मामले में उनका यह कहना बिल्कुल सही है कि आर्थिक नीतियां बनाते समय जनता से फीडबैक लेकर काम करने की आवश्यकता है।
उन्होंने साफ कहा कि वास्तव में जनता क्या सोचती है यदि सरकार के नीतिकारों को इसका पता नहीं है तो फिर भी सरकार वैसी नीतियां बनाती हैं, जो जनता के मनोनुकूल नहीं है और उनका विपरीत असर भी हो सकता है। इस समय देश में मोदी सरकार की अर्थनीति एवं देश की आर्थिक स्थिति को लेकर जो बहस चल रही है, उसमें भागवत की ये धारणाएँ महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। उन्होंने साफ कहा है कि आर्थिक मोर्चे पर ज्यादा सतर्कता की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने यह कहा है कि आर्थिक नीतियां बनाते समय जितनी सतर्कता बरती जानी चाहिए थी, उतनी नहीं बरती गई। उन्होंने सीधे-सीधे अर्थनीति में व्यापक बदलाव लाने की बात की है, जो सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के फायदे की न हों, बल्कि जिसमें मझोले और छोटे कारोबारियों और किसानों के हितों का भी पूरा ख्याल रखा जाए, साथ ही उसमें रोजगार सृजन एवं उचित पारिश्रमिक को भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए। ध्यान रखिए इस समय मोदी सरकार की अर्थनीति की सबसे ज्यादा आलोचना इसी मोर्चे पर हो रही है।
इस बात की सम्भावना बहुत कम है कि सरकार की ओर से इस पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया आएगी और यह भी संभव तो संभावना नहीं है, कि सरकार इसे पूरी तरह नजरअंदाज करे।भाजपा में संघ के बाहर से आये लोग इस पर इस बार भी सवाल उठाने की कोशिश हमेशा की तरह करेंगे, प्रतिपक्ष भी इसे आलोचना का हथियार बनाएगा पर राष्ट्र हित की सही बात, मानी जाना चाहिए। यही प्रजातंत्र का तकाजा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।