लखनऊ। तमाम योजनाओं और परिवर्तन के बावजूद स्कूली शिक्षा का ढर्रा जस का तस बना हुआ है। शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो रहा है। परेशान हो चुकी सरकार ने राजस्थान की तर्ज पर उत्तरप्रदेश में भी सरकारी स्कूलों को एनजीओ को सौंपने की तैयारी कर ली है। इसके तहत बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों को एनजीओ को गोद दिए जाएगा। माना जा रहा है कि अगले शैक्षिक सत्र से नई व्यवस्था को अमलीजामा पहना दिया जायेगा।
प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभालने के साथ भाजपा सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए कई घोषणाएं कीं। परिषदीय स्कूलों के बच्चों को ड्रेस, किताबें, बैग, जूते-मौजे देने की कार्रवाई की गई। इस सबके बावजूद शैक्षिक गुणवत्ता की स्थिति अच्छी नही है। कई शिक्षक संघों के वर्चस्व के चलते बेसिक शिक्षा विभाग लखनऊ से लेकर जिला स्तर पर दबाव में रहता है। बताते हैं कि वर्ष-2016 में कई सुधार प्रस्ताव पर अंतिम रूप से मोहर लगाने का फैसला हो चुका था, लेकिन सरकार की आपसी खींचतान के चलते पूरा मामला फाइलों में उलझकर रह गया।
भाजपा सरकार के तल्ख तेवर
भाजपा सरकार के दिग्गजों द्वारा कई बार यह संकेत दिए कि बेसिक शिक्षा में सुधार के कदमों से सरकार पीछे हटने वाली नही है। आमूल-चूल परिवर्तन के साथ बच्चों के हित में जो भी बेहतर होगा, वह फैसला लागू किया जायेगा। सूत्रों के मुताबिक कई प्रदेशों की प्राथमिक शिक्षा नीति के अध्ययन के बाद राजस्थान नीति को लागू करने का सैद्धांतिक निर्णय लिया गया। बताते है चुनिंदा जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 10 प्रतिशत स्कूल एनजीओ को दिए जाने की योजना है।
क्या है राजस्थान का फार्मूला?
राजस्थान में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में करीब 300 स्कूल एनजीओ को दिया जायेगा और इन स्कूलों के स्टाफ को निकटवर्ती स्कूलों में भेजा जायेगा। सरकार की ओर से इन स्कूलों व बच्चों को मिल रही सुविधाएं पूर्व की तरह मिलती रहेंगी। बताते चले कि यूपी में हर जिले में एक-दो कस्तूरबा स्कूल का संचालन महिला समाख्या द्वारा किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि कस्तूरबा की तर्ज पर प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों के बारे में भी यही नीति अपनाई जा सकती है।