नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया लेकिन फिर भी दिग्गजों को पारंपरिक जीत मिलती दिखाई नहीं दी। अंतत: भाजपा से वरिष्ठ नेताओं को थोकबंद रिटायरमेंट देने वाले अमित शाह ने चुनाव में जीत के लिए 73 साल के प्रेम कुमार धूमल की उंगली थामी और उनके नाम का ऐलान किया। बता दें कि वहां अब मतदान के लिए मात्र 8 दिन शेष रह गए हैं। यह भी याद दिला दें कि हिमाचल प्रदेश में हर बार सत्ता पलट जाती है। फिलहाल कांग्रेस की सरकार है अत: इस बार भाजपा की बारी है। कांग्रेस ने चुनाव अभियान के शुरूआत में ही अपने वयोवृद्ध नेता एवं सीएम वीरभद्र सिंह के नाम का ऐलान कर दिया था।
प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह दोनों ही नेता हिमाचल में अपना बड़ा वजूद रखते हैं। हिमाचल की राजनीति में दोनों नेताओं का हमेशा से डंका बजता रहा है लेकिन कांग्रेस के वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल से न सिर्फ उम्र में बड़े हैं, बल्कि राजनीतिक रूप से वो भी धूमल से ज्यादा कद्दावर हैं। 83 साल के वीरभद्र सिंह पांच बार हिमाचल प्रदेश के सीएम बन चुके हैं। वहीं 73 साल के प्रेम कुमार धूमल को दो बार मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला है।
कौन हैं प्रेम कुमार धूमल?
बीजेपी के दिग्गज नेता प्रेम कुमार धूमल 1998-2003 और 2007-2012 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। 10 अप्रैल 1944 को हमीरपुर जिले के समीरपुर गांव में पैदा हुए धूमल ने मास्टर्स के अलावा एलएलबी की पढ़ाई की है। टीचर रहे धूमल तमाम सामाजिक संगठनों के साथ भी जुड़े रहे हैं। प्रेम कुमार धूमल का राजनीतिक करियर भारतीय जनता युवा मोर्चा के साथ जुड़कर शुरू हुआ। 1980-82 में धूमल भाजयुमो के प्रदेश सचिव रहे। इसके बाद 1993-98 में वो हिमाचल प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रहे।
1989 में पहली बार पहुंचे लोकसभा
प्रेम कुमार धूमल 1989 में पहली बार लोकसभा पहुंचे, उन्होंने हमीरपुर सीट पर उपचुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद वो 1998 और 2003 में विधानसभआ चुनाव जीते। 2007 में भी उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता।
वीरभद्र का 1962 से राजनीति करियर का आगाज
एक तरफ जहां प्रेम कुमार धूमल 1980 में भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़कर राजनीति में आए, वहीं वीरभद्र सिंह इससे 18 साल पहले ही लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए। वीरभद्र पांच बार सांसद रहे और सात बार उन्हें विधानसभा पहुंचने का अवसर मिला। वीरभद्र सिंह केंद्र सरकार में भी कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
हिमाचल में चुनाव प्रचार अपने अंतिम पड़ाव में है। 1990 से सूबे की जनता हर बार सत्ता परिवर्तन करती आ रही है। फिलहाल, वहां कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में अगर पिछले दो दशक से ज्यादा के चुनावी चलन को देखें तो पड़ला बीजेपी की तरफ झुकना चाहिए। मगर, दोनों दलों ने अपने भरोसेमंद और बुजुर्ग नेताओं को सीएम फेस बनाकर मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है। हालांकि, ये तो 18 दिसंबर को चुनाव नतीजे आने के बाद ही तय हो पाएगा कि आखिर देश के दो राष्ट्रीय दलों के वरिष्ठ नेताओं में से किसे सूबे को चलाने में अपने तजुर्बे का इस्तेमाल करने का मौका मिलेगा।