भोपाल। राजनीति में सिद्धांत और मजबूरियां एक साथ चलतीं हैं। कई बार मजबूरियां इतनी बढ़ जातीं हैं कि सिद्धांतों की हत्या करनी पड़ती है लेकिन क्या कोई ऐसा रास्ता हो सकता है जबकि सिद्धांत भी जिंदा रहें और मजबूरियों का भी पालन हो जाए। मध्यप्रदेश के इतिहास में इसका एक उदाहरण दर्ज है। जब सीएम ने नोटशीट पर लिख दिया 'मैं अपने मुख्य सचिव व सिंचाई सचिव की बात से सहमत हूं, क्योंकि यह प्रस्ताव अनैतिक है। इसे मंजूर नहीं किया जा सकता, लेकिन मैं अपने सिंचाई मंत्री की मजबूरी को समझ सकता हूं। चूंकि इस मामले में उन्होंने 20 हज़ार रुपए की मूर्खतापूर्ण रिश्वत चेक द्वारा ली है, इसलिए ऐसी सिचुएशन में यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है।
सिद्धांतों की राजनीति का यह उदाहरण मध्य प्रदेश में वर्ष 1967 में सामने आया जब मप्र में संविद सरकार बनी। राजमाता विजयाराजे सिंधिया के प्रयासों से बनी संविदा सरकार करीब 19 महीने चली जिसके मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह थे। मुख्यमंत्री सिंह के मंत्रिमंडल में बृजलाल वर्मा सिंचाई मंत्री थे। यह मामला उन्हीं से जुड़ा हुआ है।
प्रदेश के दबंग नौकरशाह रहे स्वर्गीय एमएन बुच की किताब 'व्हेन द हार्वेस्ट मून इज ब्लू' की मानें तो मंत्री बृजलाल वर्मा ने एक बार लिफ्ट इरिगेशन के लिए पम्प सेट खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिसके लिए मुख्यमंत्री का अनुमोदन आवश्यक था। ऐसा इसलिए कि खरीदी प्रक्रिया में स्थापित मापदण्डों को बायपास किया गया था। प्रदेश तत्कालीन मुख्य सचिव आरसीपीवी नरोन्हा और सिंचाई सचिव एसबी लाल ने इसका पुरजोर विरोध किया।
खास बात है कि मुख्यमंत्री के पास फाइल पहुंची, तो उन्होंने लिखा कि, -'मैं अपने मुख्य सचिव व सिंचाई सचिव की बात से सहमत हूं, क्योंकि यह प्रस्ताव अनैतिक है। इसे मंजूर नहीं किया जा सकता, लेकिन मैं अपने सिंचाई मंत्री की मजबूरी को समझ सकता हूं। चूंकि इस मामले में उन्होंने 20 हज़ार रुपए की मूर्खतापूर्ण रिश्वत चेक द्वारा ली है, इसलिए ऐसी सिचुएशन में यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है।