राकेश दुबे@प्रतिदिन। अन्ना हजारे ने फिर आन्दोलन करने की चेतावनी दी है। मांग वही पुरानी है लोकपाल की स्थापना। उनके पिछले आन्दोलन से देश की राजनीति में तीसरी शक्ति के रूप में पैदा हुई “आप” पार्टी, जो पांच सालों में ५ राज्यों तक नही पहुंच सकी। आप की कहानी और उसका इन पांच वर्षों का उसका सफर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजी इस पार्टी को शुरू में एक ऐसे व्यवस्था विरोधी संगठन के रूप में देखा जा रहा था जो राजनीति और समाज को उसकी तमाम बुराइयों से मुक्त करा सकता है।
भ्रष्ट व्यवस्था में पिस रहे गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय आबादी के मन में तो इस पार्टी ने एक नई उम्मीद जगाई, पढ़-लिख कर अच्छी कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम कर रहे आत्मविश्वास से लबरेज कुशल, महत्वाकांक्षी और आदर्शवादी युवाओं की भी अच्छी-खासी संख्या इसकी तरफ आकर्षित हुई। इसके अलावा व्यावहारिक धरातल पर ऐसे लोग भी इस पार्टी से जुड़े जो राजनीति में करियर बनाना चाहते थे, पर कांग्रेस के परिवारवाद और बीजेपी की वैचारिक संकीर्णता के चलते इस दिशा में आगे बढ़ने की राह नहीं खोज पा रहे थे। लेकिन इसका विस्तार नहीं हो सका अन्ना से दूरी भी बन गई।
तत्समय के अन्ना आन्दोलन और राजनीतिक परिस्थितियों का मिला-जुला नतीजा था २०१३ के दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद चुनाव में इसने अभूतपूर्व बहुमत हासिल किया और एकमात्र विपक्षी पार्टी भाजपा को तीन सीटों तक समेट दिया । मगर “आप”अपनी धाख-साख को कायम नहीं रख सकी उसके बाद इस पार्टी में टूट-फूट हुई, व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए और जोर-शोर से लड़े गए पंजाब तथा गोवा के विधानसभा चुनावों में मनचाही सफलता नहीं मिली।
देश में कहीं और उदय होने में असफल इस पार्टी की सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अच्छे प्रयोग किए हैं, मगर कुल मिलाकर केंद्र से टकराव की नीति इसके प्रदर्शन में बाधा बनी हुई है। सबसे ज्यादा चिंता की बात इसके नैतिक आभामंडल में आई गिरावट है। आपसी विवाद और गड़बड़ियों के आरोप इसकी छवि के लिए नुकसानदेह साबित हुए हैं। अन्ना आन्दोलन के दौरान जुटे लोग बताएंगे कि 'आप' का कोई विकल्प बन रहा है या नही और “आप” के सामने चुनौती होगी कि अपनी साख बनाए रखने के लिए कुछ नया करे ,वरन अन्य छोटी-छोटी पार्टियों की तरह अपने जाने के दिन गिने।
अब सवाल यह है की इस बार के अन्ना आन्दोलन से भी फिर ऐसी कोई राजनीतिक ताकत पैदा होगी या आन्दोलन बिना किसी नतीजे के लम्बित राग हो जायेगा। देश में तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत की जरूरत है। कई छोटी-छोटी पार्टी है उनके समन्वय की जरूरत है। अन्ना आन्दोलन के पहले इन्हें जोड़ने के काम में किसी को ताकत लगाना चाहिए। नहीं तो फिर इस आन्दोलन से उपजी ताकत “आप” की तरह कहीं किसी कौने में सिमट जाएगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।