राकेश दुबे@प्रतिदिन। और जीएसटी परिषद ने बहुत सी चीजें 28 प्रतिशत के दायरे से बाहर कर दीं। भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा इस कदम से खुश नहीं हुए, वे वित्त मंत्री अरुण जेटली को मंत्रीमंडल से बाहर करने की मांग कर रहे हैं। 28 प्रतिशत के कर दायरे में शामिल वस्तुओं की संख्या में भारी कटौती का जो काम अब किया गया है, वह परिषद को पांच महीने पहले ही कर देना चाहिए था। जब पहली बार इस उच्च कर श्रेणी की घोषणा हुई थी तब भी बड़े पैमाने पर इसका विरोध हुआ था। तब सरकार में बैठे हरेक शख्स ने उच्च दर को लेकर जताए जा रहे प्रतिरोध को अनसुना कर दिया था।
अब उच्च कर दायरे में शामिल वस्तुओं की संख्या को घटाकर 50 कर दिया गया है और रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली अधिकांश वस्तुओं को निचले कर दायरे में डाल दिया गया है। इस बदलाव के बाद जीएसटी प्रणाली अब कहीं अधिक तर्कसंगत व्यवस्था नजर आती है। कुछ लोग कह सकते हैं कि सरकार को सद्बुद्धि आने के लिए पांच महीने का वक्त कोई अधिक नहीं है। इसी तरह जीएसटी परिषद ने भी इस मसले के समाधान के लिए शुरुआती दौर खत्म होने का इंतजार नहीं किया है।लेकिन अभी आधा काम ही हुआ है। पांच प्रतिशत कर वाली सूची में शामिल वस्तुओं की संख्या में बढ़ोतरी होना इसके गलत दिशा में जाने का संकेत देता है।
निम्नतम श्रेणी को भी 28 प्रतिशत वाले कर दायरे की ही तरह एक परिधि मानना चाहिए और उसमें केवल खास उत्पादों को ही शामिल किया जाना चाहिए। पांच प्रतिशत कर दायरे की कुछ वस्तुओं को आसानी से 12 प्रतिशत कर वाली श्रेणी में डाला जा सकता है। इसमें चीनी जैसी चीज शामिल है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर सॉफ्ट ड्रिंक निर्माता और मिठाइयां बनाने वाले करते हैं। मिठाइयां बनाने में लगने वाली अन्य चीजें मसलन मक्खन और घी आदि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की तरह 12 प्रतिशत के दायरे में ही हैं। इस असंगतता का कोई तार्किक कारण नहीं है कि सीमेंट क्यों 28 प्रतिशत की श्रेणी में है जबकि कंक्रीट 18 प्रतिशत के दायरे में है। निर्माण में भी इस्तेमाल होने वाले इस्पात को भी लकड़ी की तरह 18 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया है। लेकिन प्लाईवुड पर 28 प्रतिशत कर है तो उसके विकल्प पार्टिकल बोर्ड पर 12 प्रतिशत है।
यह मसला चुनिंदा चीजों को लेकर छिद्रान्वेषण से कहीं अधिक है। जब जीएसटी का विचार पेश किया गया था, तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि शून्य दर के अलावा चार कर दरें होंगी। परंतु ये दरें तो अब हकीकत हैं। ऐसे में तार्किक विसंगतियों को कम करने का एकमात्र तरीका यही है वर्गीकरण में बदलाव के लिए लागू दर का भ्रम खत्म हो। 12 और 18 प्रतिशत की बीच वाली दरों को अधिकांश चीजों पर लागू किया जाए। सिर्फ दो दरें होने से तमाम तरह के विवादों की आशंका, भ्रम और अतार्किकता को दूर करने में मदद मिलेगी। इससे चीजें आसान हो जाएंगी क्योंकि इनपुट और आउटपुट पर आम तौर पर एक ही कर लगेगा और प्रणाली में स्पष्टता भी आएगी। बाद में इन दो बीच वाली दरों का विलय कर एक आदर्श दर बनाई जा सकती है। सरकार को सोचना चाहिए था और अब जरुर सोचना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।