उपदेश अवस्थी/भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार 10 नवम्बर को सद्गुरु कबीर महोत्सव के दौरान अपना भाषण बीच में रोककर भारत के राष्ट्रपति महोदय श्री रामनाथ कोविंद को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें हरियाणा की जेल में बंद संत रामपाल की रिहाई की मांग की गई है। हरियाणा पुलिस ने संत रामपाल के खिलाफ देशद्रोह जैसे गंभीर अपराध दर्ज किए हैं। सवाल यह है कि शिवराज सिंह ने इस मामले में दखल क्यों दिया जबकि वो मुख्यमंत्री हैं। क्या यह एक चुनावी चाल है जिसमें सद्गुरु कबीर महोत्सव जैसे आयोजन और भारत के राष्ट्रपति महोदय की उपस्थिति का उपयोग कर लिया गया।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सद्गुरु कबीर महोत्सव का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में राष्ट्रपति महोदय उपस्थित थे अत: बताने की जरूरत नहीं कि सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम थे, बावजूद इसके सतलोक आश्रम प्रमुख संत रामपाल के हजारों अनुयायियों घुस आए ओर उन्होंने हंगामा किया। बैनर भी लहराए। चौंकाने वाली बात तो यह है कि हंगामा होता रहा और सुरक्षाकर्मियों ने इसे रोक नहीं। जैसे सबकुछ फिक्स था। गजब तो देखिए कि सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपना भाषण रोककर आश्वस्त किया कि उन्हें न्याय मिलेगा। फिर खुद अपने हाथ से उनका ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपा।
इसमें चुनावी चाल क्या है
सीएम शिवराज सिंह का यह कदम एक बड़ी चुनावी चाल माना जा रहा है। इस कार्यक्रम में सबकुछ ऐसे हुआ जैसे उसकी स्क्रिप्ट पहले से लिखी जा चुकी थी। जिस भोपाल में चौराहे पर छात्रवृत्ति मांगने वाली छात्राओं को लाठियां मारी जातीं हों वहां राष्ट्रपति के कार्यक्रम में हंगामा होता रहा और सब चुप थे। दरअसल, मध्यप्रदेश में कबीरपंथियों की संख्या करीब 10 लाख है और इनमें से ज्यादातर संत रामपाल के अनुयायी हैं। सीएम शिवराज सिंह जानते हैं कि उनके इस कदम से रामपाल रिहा नहीं होंगे लेकिन 10 लाख वोट जेब में आ रहे हैं तो थोड़ी मर्यादाएं तोड़ने में क्या जाता है।
इसमें गलत क्या है
सबसे बड़ी गलती तो राष्ट्रपति की सुरक्षा से खिलवाड़ है। जिस तरह से राष्ट्रपति की मौजूदगी में हंगामा हुआ, एक बड़ा अपराध है। हंगामा बढ़ भी सकता था और राष्ट्रपति को खतरा भी हो सकता था। दूसरी गलती यह कि शिवराज सिंह चौहान कबीरपंथियों के नेता नहीं है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उन्हे हक नहीं बनता कि वो किसी दूसरे प्रदेश की सरकार या पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई का विरोध करें। यदि इस तरह के विरोध करना है तो उन्हे मुख्यमंत्री का पद त्यागना चाहिए और तीसरी बड़ी गलती यह है कि वोट के लिए शिवराज सिंह राजनीतिक मर्यादाओं और परंपराओं का उल्लंघन कर रहे हैं। यदि राष्ट्रपति को ज्ञापन दिलावाना ही था तो इसके दूसरे रास्ते भी थे। कार्यक्रम के दौरान खुद को हीरो बताने के लिए इस तरह का ड्रामा निश्चित रूप से मध्यप्रदेश के राजनैतिक भविष्य के लिए कतई अच्छा नहीं है।