वैभव श्रीधर/भोपाल। प्रदेश के अधिसूचित क्षेत्रों में आदिवासी व्यक्ति अपनी जमीन कृषि कार्य के लिए सिर्फ आदिवासियों को ही बटाई (किराए) पर दे सकेंगे। गैर आदिवासियों को बटाई पर जमीन देना प्रतिबंधित होगा। बटाई पर जमीन देने के लिए बाकायदा अनुबंध होगा। इसका पालन करना दोनों पक्षों के लिए जरूरी होगा। कोई भी पक्ष इसका उल्लंघन करता है तो उस पर प्रति हेक्टेयर दस हजार रुपए का जुर्माना लगेगा।
बटाईदारों के हितों को सुरक्षित करने के लिए प्रदेश सरकार बटाईदार के हित संरक्षण अधिनियम 2017 (Croppers interest Protection Act 2017) लाने जा रही है। राजस्व विभाग ने इसका मसौदा तैयार कर अनुमति के लिए केंद्र सरकार को भेज दिया है। यदि जल्द ही अनुमति मिल जाती है तो इसे 27 नवंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव अरुण पांडे ने बताया कि मसौदा राष्ट्रपति की अनुमति के लिए विचाराधीन है।
प्रस्तावित कानून में यह हैं प्रावधान
अनुबंध पांच साल के लिए होगा। इसके बाद भी करार को आगे बढ़ाना है तो नवीनीकरण कराना होगा।
तहसीलदार कार्यालय में इसकी एक प्रति देनी होगी।
प्राकृतिक आपदा की सूरत में सरकार द्वारा दी जाने वाली राहत राशि बटाईदार को करार के हिसाब से मिलेगी।
जमीन मालिक की मृत्यु होने पर वारिसों को अनुबंध का पालन करना होगा।
जमीन मालिक और बटाईदार के बीच यदि कोई विवाद होता है तो निराकरण तहसीलदार करेंगे।
तहसीलदार के आदेश के खिलाफ अपील अनुविभागीय अधिकारी के पास होगी। आदेश के पुनरीक्षण का अधिकार कमिश्नर को होगा।
द्वितीय अपील का प्रावधान नहीं रहेगा।
अनुबंध समाप्त होने पर बटाईदार को कब्जा छोड़ना होगा। यदि बटाईदार कब्जा नहीं छोड़ता है तो तहसीलदार कार्रवाई करेंगे।
क्यों उठाना पड़ा कदम
प्रदेश में प्राकृतिक आपदा से फसलों के प्रभावित होने पर सरकार आर्थिक सहायता देती है। सूत्रों के मुताबिक पिछले सालों में यह देखा गया है कि बटाई पर जमीन होने पर सरकार की राहत सहायता का लाभ वास्तविक किसान को नहीं मिल पाता है।
दरअसल, रिकार्ड में जमीन जिस व्यक्ति के नाम होती है राहत राशि उसी के खाते में जमा होती है, जबकि खेती बटाईदार करता है। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बटाईदार के हितों को सुरक्षित करने के लिए व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए थे। इसे देखते हुए राजस्व विभाग ने नया अधिनियम प्रस्तावित किया है। इसमें बटाईदार के साथ जमीन मालिक हितों का भी ध्यान रखा गया है।