नई दिल्ली। रसोई गैस की सब्सिडी मामले में भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय ने प्राइमरी के स्टूडेंट जैसी हरकत की है। मोदी सरकार ने तय किया था कि पेट्रोल की तरह रसोई गैस की सब्सिडी भी खत्म कर दी जाए और 1 जुलाई 2016 से प्रतिमाह 4 रुपए का इजाफा किया जाने लगा। लगातार 10 बार दाम बढ़ाने के बाद सरकार को याद आया कि उनका यह फैसला तो पीएम नरेंद्र मोदी की उज्जवला योजना के खिलाफ है अत: अब सरकार ने तय किया है कि वो रसोई गैस सिलेण्डर के दाम नहीं बढ़ाएगी परंतु सवाल यह है कि जो दाम बढ़ाकर सब्सिडी घटाई जा चुकी है उसका क्या ?
यह था सरकार का फैसला
सरकार ने सरकारी तेल विपणन कंपनियों को निर्देश दिए थे कि वो हर महीने कुकिंग गैस सिलेंडर (एलपीजी) में 4 रुपए प्रति सिलेंडर का इजाफा करे। यह नियम जून 2016 से लागू है। इस कदम के पीछे सरकार का उद्देश्य यह था कि वो मार्च 2018 तक सिलेंडर पर सब्सिडी को पूरी तरह से खत्म कर देंगे। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) तेल कंपनियों को इजाजत दी गई थी कि वो सब्सिडी वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर (14.2 किलो) की कीमत में 2 रुपये प्रति माह (वैट को छोड़कर) का इजाफा करे। कंपनियों को दिया गया यह अधिकार 1 जुलाई 2016 से प्रभावी कर दिया गया था। तेल कंपनियां इस मंजूरी के बाद से करीब 10 बार एलपीजी की कीमतों में इजाफा कर चुकी हैं।
जिसने सुना वही हतप्रभ
रसोई गैस मामले में मोदी सरकार के इस यूटर्न से हर कोई हतप्रभ है। लोग समझ नहीं पा रहे कि क्या इस फैसले को लागू करने से पहले नौकरशाह और मंत्रियों समेत भाजपा के दिग्गज नेता भी यह नहीं समझ पाए थे कि उनका यह फैसला उज्जवला योजना के खिलाफ है जिसमें गरीबों को सस्ती दरों पर रसोई गैस उपलब्ध कराने का वचन दिया गया है। बड़ा सवाल यह है कि मूल्यवृद्धि रोक देने से इस गलती को दुरुस्त नहीं समझा जा सकता। पिछले 10 बार में जो मूल्यवृद्धि की गई है उसे भी वापस लिया जाना चाहिए एवं इस दौरान जो अतिरिक्त रकम सरकारी कंपनियों ने उपभोक्ताओं से प्राप्त कर ली है वह भी उनके खातों में वापस की जानी चाहिए।