
इस आधार पर ही एसबीआई ग्रुप की चीफ इकॉनमिक अडवाइजर सौम्या कांति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की संभावना जताई है कि आरबीआई की ओर से 2,000 के नए नोटों की छपाई को रोका जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की संभावना है कि आरबीआई की ओर से 2,463 अरब रुपये मूल्य के 2,000 रुपये के नोटों को जारी करने की बजाय 50 और 200 रुपये के नोटों को ही जारी किया जाए।
इकोफ्लैश की रिपोर्ट में कहा गया है, '2,000 रुपये के नोटों को मार्केट में भुनाने में समस्याएं आ रही हैं। खुले पैसों की समस्या के चलते आरबीआई ने शायद इनकी छपाई को धीरे-धीरे कम कर दिया है। नोटबंदी के बाद केंद्रीय बैंक ने इनकी तेजी से छपाई की थी ताकि कैश की कमी को दूर किया जा सके।' इसका अर्थ यह भी है कि सरकार और आरबीआई देश में प्रचलन में चल रही मुद्रा में 35 फीसदी हिस्सा छोटी करंसी का रखना चाहते हैं।
गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने बीते साल 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को वापस लेने का ऐलान किया था। उस वक्त देश में प्रचलित मुद्रा में इनकी हिस्सेदारी 86 से 87 पर्सेंट तक की थी। नोटबंदी के बाद देश में कैश की बड़ी कमी देखी गई थी और इस दबाव से निपटने के लिए ही केंद्रीय बैंक ने तेजी से 2000 रुपये के नोटों की छपाई की थी।