राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस में जैसे तैसे राहुल युग की शुरुआत हो गई। इस विधि से कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर चयन तो आसान था, पर व्यावहारिक तौर पर पार्टी का नेतृत्व करना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सकने वाले एक भरोसेमंद नेता के रूप में स्वीकार्य होना बहुत ही ज्यादा कठिन है। अब उनके सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। पहली, खुद की नेतृत्व-शैली में बदलाव और दूसरी, पार्टी ढांचे में सुधार करना व यह संदेश देना कि पार्टी एक प्रमुख राजनीतिक आवाज बनने जा रही है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस में किस तरह का बदलाव ला पाते हैं? 2014 के आम चुनाव में मिली करारी शिकस्त से घायल कांग्रेस के लोकसभा में कुल 44 सदस्य हैं, इतना ही नहीं, बाद में राज्य विधानसभा चुनावों में भी इसे एक के बाद दूसरी हार मिली है, जिसने पार्टी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। कांग्रेस पार्टी के 132 वर्षों के इतिहास के किसी भी दौर से कहीं अधिक बदतर है।
राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे को फिर से खड़ा करना है। पार्टी राज्यों में कमजोर पड़ रही है। केरल जैसे चंद सूबों को छोड़ दें, तो उसके पास कहीं भी प्रभावी संगठन नहीं है। जमीनी स्तर पर इसके पास ऐसे कैडर नहीं हैं, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी के चुनावी तंत्र से लड़ सकें। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बूथ प्रबंधन का उसका कौशल है, पर कांग्रेस के पास दूर-दूर तक चुनाव प्रबंधन का ऐसा कोई ढांचा नहीं है।
सोनिया गांधी ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के 10 वर्षों के शासन में कभी भी प्रत्यक्ष तौर पर ऐसा साहस नहीं दिखाया कि वह पार्टी के काम-काज की केंद्रीय शैली को बदलने जा रही हैं। इस मॉडल पर टिके रहने का ही नतीजा रहा कि पार्टी में ऐसा मजबूत व भरोसेमंद नेतृत्व नहीं उभर सका, जो राज्यों में लोगों को प्रभावी तौर पर पार्टी से जोड़ सके।
संगठन को लोकतांत्रिक बनाना जरूरी हो गया है, पर ऐसा तभी होगा, जब शीर्ष नेतृत्व पार्टी को आंतरिक चुनावों द्वारा नए सिरे से गढ़े। इससे पार्टी में नए नेतृत्व व कार्यकर्ता उभर सकते हैं।केवल एक ठोस राजनीतिक नजरिया ही राहुल गांधी को मोदी से टकराने में मदद करेगा। असंतोष के मौजूदा माहौल को देखते हुए जरूरत विकास के ऐसे वैकल्पिक एजेंडे को सामने रखने की है, जो बेरोजगारी बढ़ाते विकास मॉडल के खिलाफ रोजगारपरक विकास का एक मॉडल हो। एनडीए मॉडल की मुखालफत के लिए कांग्रेस के पास ऐसा मॉडल होना ही चाहिए, जिसके मूल में सामाजिक कल्याण व आर्थिक अधिकार हो।ये सब काम परिश्रम मांगते हैं, राहुल बाबा कर गये तो ठीक, वरन इतिहास में जो दर्ज होगा, उसे कांग्रेस समाप्ति की संज्ञा दी जायेगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।