राकेश दुबे@प्रतिदिन। राज्य सभा वरिष्ठों का सदन कहा जाता है। कल जो हुआ उसने भारत के इस उच्च सदन की गरिमा को तार-तार कर दिया। सदन न चलने देने की जोरदार कोशिश ने विश्व के महान बल्लेबाज को अनसुना ही सीट पर लौटा दिया। बाद में प्रतिपक्ष की यह अपील कि सचिन इसे खेल भावना से लेंगे और भी बचकानी लगी। क्या चरित्र होता जा रहा है? भारत में संसद का विरोध जनधन की बर्बादी पर। सवाल यह भी है कि क्या आपने कभी सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा में बोलने की कोशिश करते देखा है ? कल के हंगामे में राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को उन्हें बोलने देने की अनुमति तक कोई सुन नहीं पाया। इसे क्या कहें ? मैदान में हर कोने पर धुआंधार शॉट लगाने वाले महानतम क्रिकेटर और भारत रत्न सांसद सचिन आखिर पहली बार में ही अपनी ही पार्टी से ‘क्लीन बोल्ड’ हो गए। देर तक खड़े रहकर सचिन बार बार कुछ बोलने की नाकाम कोशिश करते रहे और कांग्रेस के हंगामे के बीच एक शब्द भी न बोल पाने की उनकी बेबसी एक कॉमेडी बन कर रह गई।
पांच साल से सचिन सांसद हैं, लेकिन बोलने की कोशिश करते उन्हें पहली बार देखा गया। पर आज उन्हें ये समझ में आ गया कि खेल के मैदान में हजारों दर्शकों के शोर के बीच दनादन शॉट लगाने से ज्यादा मुश्किल है सांसदों के शोर शराबे और हंगामे के बीच एक शब्द भी बोल पाना। भले ही आप भारत रत्न हों या फिर उसी पार्टी के मनोनीत सांसद।
सचिन पर ये आरोप लगते रहे हैं कि पांच साल में वो सबसे कम उपस्थित रहे हैं। अप्रैल के आंकड़ों के मुताबिक सचिन 348 दिनों में सिर्फ 23 दिन ही राज्यसभा आए जबकि बतौर सांसद उनपर करीब 60 लाख रूपए खर्च हो चुके हैं। राज्य सभा सदस्य होने के नाते सचिन को हर महीने 50 हजार रुपये वेतन मिलता है। साथ ही 45 हजार रुपये संसदीय क्षेत्र में खर्च करने और 15 हजार दफ्तर खर्च, यात्रा और दैनिक भत्ते के तौर पर मिलते हैं।
सचिन अपना भाषण नहीं कर पाए मजाक बन कर रह गई, राज्यसभा में एक भारत रत्न की पहली बात। क्या दृश्य था तमाम सांसद सचिन को घेर कर खड़े थे, इनमें जया बच्चन भी खड़ी थीं। जया बच्चन हंगामे के बीच में बार-बार कांग्रेस से अनुरोध कर रही थीं कि वह सचिन को बोलने दें। बीच में डेरेक ओ ब्रायन की तरफ से यह कोशिश हुई कि कांग्रेस 3 बजे सचिन को भाषण देने दे, पर बात नहीं बनी। इस पूरे बवाल के दौरान सचिन की पत्नी अंजलि विजिटर्स गैलरी में बैठे हुए सदन की कार्यवाही को गौर से देख रही थीं। क्या अब इस तरह तो कोई भी नॉमिनेटेड सदस्य बोलने का साहस करेगा? उसकी इच्छा होगी। तो भी वह इस रवैये से बचने की कोशिश करेगा। क्या इस राज्यसभा में सिर्फ सियासतदानों के भाषण होंगे? सिर्फ वह जो चिल्ला सकते हैं, वही बोलेंगे? कोई भी मनोनीत सदस्य तो ऐसे में कभी बोल ही नहीं पायेगा। बंद होना चाहिए ये हंगामे या राज्यसभा में विभिन्न क्षेत्र से प्रतिभाओं का चयन। विचार यह भी होना चाहिए क्या सांसदों द्वारा एक अन्य सांसद को न बोलने देना भी विशेषाधिकार का हनन है ?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।