राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह स्पष्ट दिखता है पेट्रोलियम क्षेत्र के लिए जीएसटी की मौजूदा व्यवस्था आधी-अधूरी है। जहां केरोसिन, घरेलू रसोई गैस समेत द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस, नेफ्था और फर्नेस ईंधन को जीएसटी के दायरे में रखा गया है, वहीं कच्चा तेल, विमान ईंधन, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस इसमें शामिल नहीं किये गए हैं। पेट्रोल एवं डीजल को जीएसटी से बाहर रखे जाने से इन उत्पादों की खरीद करने वाली इकाइयों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ भी नहीं मिल रहा है। सरकार ही नहीं जीएसटी परिषद को खुद पेट्रोलियम उत्पादों को कर दायरे में लाना जरूरी लगता है तो वह खुद ही ऐसा कर सकती है।
हालांकि जीएसटी का दायरा बढ़ाने की राह में कई चुनौतियां भी हैं। केंद्रीय उत्पाद कर संग्रह में पेट्रोलियम उत्पादों का योगदान ६३ प्रतिशत से अधिक है जबकि राज्यों के कुल बिक्री कर एवं वैट संग्रह में इसकी हिस्सेदारी २९ प्रतिशत है। इन कर संग्रहों में भी बड़ा हिस्सा पेट्रोल एवं डीजल पर वसूले जाने वाले कर से आता है। लिहाजा पेट्रोलियम क्षेत्र को जीएसटी के दायरे में लाने से केंद्र एवं राज्यों के राजस्व पर पडऩे वाले असर का भी जीएसटी परिषद को ध्यान रखना होगा। खासकर पेट्रोल एवं डीजल की बिक्री पर लागू केंद्र एवं राज्यों की कर दरों के बारे में कोई फैसला करना अधिक चुनौतीपूर्ण होगा। फिलहाल पेट्रोल पर केंद्र ६५ प्रतिशत उत्पाद शुल्क वसूलता है जबकि राज्यों की औसत वैट दर ४८ प्रतिशत है।
डीजल के मामले में यह क्रमश: ५१ प्रतिशत है। इन दरों को समायोजित कर जीएसटी की मौजूदा दरों के भीतर लाए जाने से उपभोक्ता तो खुश हो जाएंगे लेकिन केंद्र एवं राज्यों के लिए यह दु:स्वप्न जैसा होगा। वेतन वृद्धि, किसान कर्ज माफी, बैंक पुनर्पूंजीकरण एवं अन्य योजनाओं से वित्तीय बोझ बढऩे और जीएसटी से अप्रत्यक्ष कर संग्रह में कमी आने की आशंकाओं के चलते उनकी राजकोषीय स्थिति पहले से ही दबाव में है। इन मुश्किलों से निकलने का एक रास्ता तो यह है कि पेट्रोल एवं डीजल के लिए जीएसटी की दर २८ प्रतिशत तय कर दी जाए। यह भी सच है कि जीएसटी प्रणाली वाले कुछ देशों ने भी पेट्रोलियम उत्पादों पर ऐसी ही लचीली कर-व्यवस्था लागू की हुई है। इसके बावजूद इसमें कोई संदेह नहीं है कि समूचे पेट्रोलियम क्षेत्र को जीएसटी के दायरे में लाने से उद्योग एवं व्यापार जगत की जटिलता एवं भ्रम और बढ़ेंगे।
मौजूदा दौर में पेट्रोलियम क्षेत्र को जीएसटी के दायरे में लाने की मंशा पर जीएसटी परिषद को गंभीरता से विचार करना चाहिए। असल में, जीएसटी प्रणाली की खामियों को ही अभी पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सका है। ऐसे में कर दरों की संख्या कम करने और इसके क्रियान्वयन में आ रही कई चुनौतियों को दूर करने की बेहद जरूरत है।इसके विपरीत सरकार पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का विचार अभी विलम्बित स्वर में कर रही है | परिषद जो खुद कर सकती है, उसके लिए सरकार का इंतजार क्यों ?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।