राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय मनीषा में एक संत हुए है चर्वाक, उनका दर्शन था “जब तक जियो, सुख से जिओ। कर्जा लेकर घी पीओ।” भारत सरकार इस दर्शन पर इन दिनों चल रही है। सरकार द्वारा चालू वित्त वर्ष में बाजार से दिनांकित प्रतिभूतियों के जरिए 50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि जुटाने का फैसला पहली नजर में देश के अर्थजगत को चिंतित करता है। इसके वित्त मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि इससे बजट 2017-18 में रखे गए निवल कर्ज के लक्ष्य में हालांकि कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन इससे हमारा समाधान नहीं हो सकता।
देश की आर्थिक रीढ़ भारतीय रिजर्व बैंक के साथ ऋण कार्यक्रम की समीक्षा के बाद सरकार ने चालू वित्त वर्ष में दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों, जिसे तकनीकी शब्दावली में जी-सेक कहते हैं, के जरिए ५०,००० करोड़ रुपये अतिरिक्त जुटाने का फैसला किया है। इससे टी-बिल्स के जरिए जुटाई जाने वाली राशि मार्च, २०१८ तक घटकर २५.००६ करोड़ रुपये रह जाएगी। इसका मौजूदा संग्रह ८६.२०३ करोड़ रुपये है। टी-बिल्स तो एक साल से कम समय की प्रतिभूतियां होती हैं, जबकि दिनांकित प्रतिभूतियां पांच साल से अधिक समय में परिपक्व होती हैं। वित्त मंत्रालय के बयान को स्वीकार करें तो सरकार अब से लेकर मार्च, २०१८ तक शुद्ध रूप से अतिरिक्त ऋण नहीं जुटा रही है.किंतु टी-बिल्स इस दौरान ६१,२०३ करोड़ रपये कम होंगे जबकि जी-सेक ऋण ५०,००० करोड़ रुपये बढ़ेगा।
बजट २०१७-१८ में सकल और शुद्ध बाजार कर्ज क्रमश: ५.८० लाख करोड़ रुपये और ४.२३ लाख करोड़ रुपये रखा गया था। इसमें से ३.४८ लाख करोड़ रुपये शुद्ध रूप से दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों से और २००२ करोड़ रुपये टी-बिल्स से जुटाए जा रहे हैं। इस दौरान सकल और शुद्ध बाजार कर्ज क्रमश: ५,२१.००० करोड़ रु. और ३.८१.२१८ करोड़ रु. रहा है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान २६ दिसम्बर, २०१७ तक बाजार से उधार तय कैलेंडर के अनुरूप है। सरकार जो भी कहे, सच यह है कि जीएसटी से राजस्व प्राप्ति नवम्बर माह में सबसे कम रहने से बजट गड़बड़ा गया है। सरकार ने कई वस्तुओं पर जीएसटी दर को २८ प्रतिशत से घटाकर १८ और १२ प्रतिशत कर दिया है। इस कारण सरकार को पर्याप्त आय नहीं हो रही है और खजाने पर दबाव बढ़ रहा है।
एक ओर आपने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के ३.२ प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा है और दूसरी ओर आपका राजस्व घट रहा है. उसे पूरा करने के लिए आप कर्ज ले रहे हैं तो यह परोक्ष राजकोषीय घाटा ही हुआ। यह स्थायी निदान नहीं हो सकता. सरकार एवं विपक्ष को स्थायी निदान खोजना चाहिए। उत्पादन बाज़ार के हाथ में है, कर्जा लेना सरकार के हाथ में। भुगतान किसे करना है, करदाता को। कर्जा लेने की प्रवृत्ति ठीक नहीं होती, प्रबंध कीजिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।