प्रदूषण : हम कब सफल होंगे ? | EDITORIAL

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक अमेरिकी पत्रकार ने दिल्ली को महज इस लिए छोड़ दिया क्योंकि अमेरिकी दूतावास में वायु प्रदूषण को जांचने वाली मशीन बता रही है कि यहां उसके बच्चे की सेहत को खतरा है। तब यह कहा गया था कि दूतावास समस्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। अब दिल्ली का वायु प्रदूषण वैश्विक  सुर्खियों में है। दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 11 भारत के हैं। इतना ही नहीं, अगले 20 वर्षों में शहरी आबादी में बड़े विस्तार की संभावना है। इस समस्या का सही समाधान तभी निकल सकता है, जब हम असली  समस्या को पहचानेंगे। अच्छी बात है कि इस दिशा में प्रगति हुई है।

दिल्ली में सरकारी जांच केंद्र स्थापित किए तो उन्होंने भी इसकी पुष्टि की कि समस्या वाकई गंभीर है। आबोहवा में हद से अधिक पीएम 2.5 की मौजूदगी से न सिर्फ बच्चे समय पूर्व अस्थमा के शिकार बन सकते हैं, बल्कि गर्भवती महिलाएं ऐसे बच्चे को जन्म दे सकती हैं, जो तमाम तरह की स्वास्थ्यगत समस्याओं के साथ-साथ कम वजन का शिकार हो जाए। ऐसे सूक्ष्म कण तो बुजुर्गों के लिए घातक हो सकते हैं।

कई लोग जागरूकता फैलाने में लगे हुए हैं। वे अदालत भी जा रहे हैं। मगर अदालती सक्रियता की एक सीमा होती है। न्यायपालिका उन मामलों में कारगर होती है, जहां गतिविधियों पर प्रतिबंध की जरूरत है। वह कई मोर्चों पर रणनीति बनाने का माध्यम नहीं बन सकती। यह काम सरकार का है। कुछ वर्ष पहले तक दिल्ली से कहीं अधिक प्रदूषित शहर बीजिंग था। 2008  ओलंपिक गेम होने वाले थे, सो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसे लेकर खूब बातें हो रही थीं। चीन की सरकार ने स्थानीय औद्योगिक प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए। बिजली संयंत्रों में कोयले के इस्तेमाल को कम किया, साथ ही बीजिंग में कारों की बिक्री सीमित कर दी।

नासा की तस्वीर बताती है कि 2010 से 2015 के बीच चीन में सूक्ष्म कणों का जमाव 17 प्रतिशत तक कम हुआ, जबकि इसी दरम्यान हमारे यहां इसमें 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अगर हम चाहते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण का औसत स्तर राष्ट्रीय स्तर के समान हो, तो सबसे पहले हमें प्रदूषण में 72 प्रतिशत की कमी लानी होगी, और फिर यह सुनिश्चित करना होगा कि जनसंख्या व आर्थिक गतिविधियों में तेजी के बाद भी यह इसी स्तर पर बना रहे।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदूषण में करीब 38 प्रतिशत हिस्सा सड़कों की धूल का होता है। इसे नियंत्रित करना मुश्किल है, क्योंकि अव्वल तो सड़कों की दशा खराब है और फुटपाथ कच्चे हैं, फिर साफ-सफाई के लिए परंपरागत तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं, जैसे हाथों से झाड़ू लगाना। वाहनों से निकलने वाला धुआं 20 प्रतिशत प्रदूषण कारक है। इस आंकड़े के बढ़ने की आशंका है, क्योंकि कारों की संख्या बढ़ रही है। इसीलिए इस क्षेत्र में ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है पर्यावरण मसले का हल इलेक्ट्रिक कारों व स्कूटरों में छिपा है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि जैसे ही उपलब्धता हो, हमें दिल्ली में टैक्सियों व तिपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक किया जाना अनिवार्य कर देना होगा। इसमें समय  लगेगा, पर ये कोशिश बतायेंगी कि आखिर कब दिल्ली में साफ हवा में सांस लेना  संभव होगा ?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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