राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में जो हो जाये वो कम है। सरकार के निर्देश को बला-ए-ताक रख कर निजी अस्पताल, सडक दुर्घटनाओं में घायल मरीजों से मनमाने तरीकों से पैसे वसूल रहे हैं। सरकार की अंत्येष्टि योजना भी भ्रष्टाचार में घिर गई है। कहीं कोई देखने समझने वाला नहीं है। सरकार विधान सभा में जवाब देने में आनकानी करती है। सूचना के अधिकार से मिली जानकारी बहुत कुछ कहती हैं, पर सरकार अपनी गति से चल रही है, उसे उच्चतम न्यायलय के निर्देशों की भी चिंता नहीं है।
देश के उच्चतम न्यायलय ने सडक दुर्घटनाओं में घायल मरीजों का समीपवर्ती निजी अस्पतालों एवं नर्सिंग होम में त्वरित इलाज निशुल्क करने के निर्देश दिए है। इसे प्राथमिक उपचार की श्रेणी में माना जायेगा और निजी अस्पताल मरीज की स्थिति का आकलन कर समीपवर्ती सरकारी अस्पताल में रेफर करने के लिए एम्बुलेंस सहित आवश्यक सुविधा उपलब्ध करायेंगे। मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस निर्णय के अनुरूप निर्देश तो जारी कर दिए पर इस पर निगहबानी कौन करे यह तय नहीं हुआ। अब हालत यह है की सडक दुर्घटना में घायल मरीजों को राजधानी के निजी अस्पताल ही नहीं, देखते है। तब तो उन शिकायतों को सत्य के नजदीक माना जा सकता है, जो प्रदेश के दूरस्थ अंचलों से मिलती है।
राजधानी के व्यस्तम रायसेन रोड पर आये दिन वाहन दुर्घटनाएं होती रहती है। पिछले सप्ताह का वाकया है, दुर्घटना में घायल एक गरीब महिला को एक निजी अस्पताल ने मरहमपट्टी और अस्पताल में 30 मिनिट रुकने के नाम पर हजारों रूपये का बिल थमा दिया। उसकी दयनीयता का आलम यह था की उसे चंदा करके यह राशि जमा करना पड़ी। शहडोल, गुना और बैतूल में हुई वाहन दुर्घटनाओं के मामले में ऐसी ही शिकायतें दुर्घटना में घायल मरीजों ने कैमरे पर कही हैं, जो सबने देखी है।
विधान सभा में इस बारे में एक विधायक ने इस विषय पर प्रश्न किया तो सरकार इस बारे में निर्देश देने की बात तो स्वीकार करती है। सुविधा की बात करती है एम्बुलेंस उपलब्ध कराने की बात करती है पर इस पर निगह्बानी किस की होगी इस पर मौन हो जाती है।
इसी प्रकार दुर्घटना में अन्य कारणों से मृत निराश्रितों के अंतिम संस्कार के लिए राज्य सरकार अंत्येष्टि सहायता योजना बनाई है। इस योजना के लिए राशि आवंटित है। राशि का उपयोग भी हो रहा है। पर सरकार सूचना के अधिकार में जिले स्तर के आंकड़े उपलब्ध नहीं करा पा रही है क्योंकि देखने वाला कोई नहीं है। निराश्रित अंत्येष्टि के काम में लगी एक सामाजिक संस्था का यह तक कहना है कि 2013 से 2017 तक शासन ने प्रति शव जो राशि खर्च की है, उससे आधी राशि में आज भी सामाजिक संस्था इस काम को करती है। सरकार की योजना कल्याणकारी हैं, पर प्रशासनिक अंकुश के अभावके कारण लाभ कम बदनामी का हिस्सा बढ़ रहा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।