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बिना जरूरी परीक्षण के ही जिंदा बच्चे को मरा कैसे घोषित करने की इस घटना की अब तो प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट ने भी डॉक्टरों की तरफ से बरती गई घोर निंदनीय लापरवाही की पुष्टि कर दी है। मैक्स ने भी ‘गलती’ मानते हुए आरोपित दोनों डॉक्टरों को निलंबित तो कर दिया है। पुलिस ने भी मामले के आधार पर अस्पताल को तलब किया है पर डॉक्टरों की गिरफ्तारी नहीं की। दिल्ली सरकार भी ‘प्रभावी कार्रवाई’ के लिए अंतिम रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने पांच दिन पहले अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करने की बात कही थी, पर उस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अभी यह बात निश्चित नहीं है कि सरकार इस पर क्या कार्रवाई करेगी? लेकिन डॉक्टरों के इस व्यवहार से कई सवाल उठे हैं। पहली नजर में यही लगता है कि अस्पताल में आवश्यक दक्षता वाले चिकित्सक तैनात नहीं हैं। यह तथ्य भी सामने आ रहा है की बाजारवाद का दबाव और काम का दबाव कारण है और दबाव न होने की स्थिति में भी ‘सब चलता है’ की जाहिली मानसिकता से चिकित्सा सेवा ग्रस्त होती जा रही हैं। जिनमें मरीज से व्यवहार उसकी हैसियत पर निर्भर माना जाने लगा है।
चिकित्सा विज्ञान की मंहगी पढाई, अच्छी नौकरी का अभाव, और बाजारवाद इस प्रकार घटना के मूल में होती हैं। इतने बवाल के बाद सरकार की कोई स्पष्ट नीति सामने नहीं आ रही है बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण यह कि सरकार भी उसी नजरिये का समर्थन कर रही है जो चिकित्सा को सेवा से व्यापार बनाने पर तुला है। दरअसल, भौतिकताओं को निजी-सामाजिक व्यवहारों से अधिक प्राथमिकता देना चिकित्सा सेवा में बढ़ता जा रहा है, जिससे चिकित्सा सेवा समाप्त होती जा रही है। व्यापार फलफूल रहा है। इस पर अंकुश जरूरी है।