ललित गर्ग। एक निजी स्कूल में काम करने वाले तारीक भट एवं सुमाया बशीर को स्कूल प्रबंधन ने शादी के दिन बर्खास्त कर दिया। इस युगल का गुनाह यह था कि शादी के पहले से उनके बीच प्यार था। यानी उन्हें स्कूल प्रबंधन ने प्यार की सजा दी। वह भी तब, जब उन्होंने शादी कर ली। प्रबंधन का कहना है कि शादी से पहले दोनों रोमानी रिश्ते में थे और उनका रोमांस छात्रों पर खराब प्रभाव डाल सकता है। बड़ा अजीब वाकया है, जिन स्थितियों से छात्रों पर विकृत प्रभाव पड़ सकता है, उनकी तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता और जीवन से जुड़ी इन बुनियादों बातोें को झुठलाने के लिये हम न जाने क्या-क्या कर देते हैं।
प्रेम पर पहरे सदियों से बिठाए जाते रहे हैं। समाज प्रेम को अनैतिक मानता है। फिर भी प्रेम करने वाले तमाम अवरोधों, तमाम पहरों को चुनौती देते रहे हैं। मगर प्रेम जितना मोहक, जितना जादुई और आनंददायक है, उतना ही जटिल भी। यही वजह है कि कभी एक-दूसरे पर जान निछावर करने का जज्बा रखने वाले अक्सर प्रेम से ऊब कर अलग होने का फैसला करते हैं। इससे समाज में टूट पैदा होती है, बिखराव आता है, विकृतियां जन्म लेती हैं। इसलिए धर्म और समाज के सिपाहियों को प्रेम के खिलाफ मोर्चाबंदी का मौका मिल जाता है।
जैसे-जैसे तकनीक में महारत हासिल करने लगे, हमारा बौद्धिक स्तर बढ़ा, हमने विकास की नयी इबारतें लिखी लेकिन दिमागी तौर पर जाति, धर्म, और संकीर्णताओ की दीवारें ढहने के बजाय बढ़ने लगी है।
तारीक भट मुसलिम एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की बाल इकाई में काम करते थे और सुमाया बशीर इसी संस्थान की बालिका इकाई में काम करती थीं। एक ही जगह काम करते हुए दोनों का आपसी संपर्क धीरे-धीरे प्यार में बदल गया तो यह न किसी के लिए हैरानी की बात होनी चाहिए न एतराज की। फिर, प्यार के इस रिश्ते को उन्होंने वहीं तक रहने नहीं दिया, उसे एक दूसरे के प्रति आपसी कर्तव्य और सामाजिक मर्यादा में भी बांधने का फैसला कर लिया। कुछ महीने पहले उनकी सगाई हुई थी, तब उन्होंने सहकर्मियों को दावत दी थी। एक महीने पहले उन्होंने शादी के मद्देनजर छुट्टी के लिए अर्जी दी थी और स्कूल प्रबंधन ने छुट्टी मंजूर की थी। फिर शादी के दिन, उन्हें सेवामुक्त क्यों कर दिया गया?
उनकी बर्खास्तगी एक निहायत अवैध, अलोकतांत्रिक और क्रूर कार्रवाई है जिसके लिये राज्य सरकार एवं उसके शिक्षा विभाग को तत्परता से कठोर कार्रवाही करनी चाहिए। अक्सर हम ऐसी घटनाओं को साधारण मानकर या किन्हीं का व्यक्तिगत, सामाजिक मसला मानकर छोड़ देते हैं। यह हमारी भूल है। ऐसी घटनाएं एक व्यक्ति, एक परिवार, एक समाज को ही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्रीयता को नुकसान पहुंचाती है। पहलगाम का एक निजी संस्थान का मामला कह कर छोड़ देना ठीक नहीं होगा। निजी शैक्षिक संस्थान खोलने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। पाठ्यक्रम, पढ़ाई, परीक्षा जैसी बहुत सारी चीजों में सरकार के बनाए नियम-कायदों का पालन करना होता है। फिर, कोई निजी संस्थान ही क्यों न हो, वह अपने कर्मचारी के नागरिक अधिकार का हनन कैसे कर सकता है?
ललित गर्ग: 60, मौसम विहार, तीसरा माला, डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051