भोपाल। चित्रकूट उपचुनाव में अंत समय में भाजपा के प्रत्याशी का बदलना और फिर आए चुनाव परिणामों के बाद संदेह जताया गया था कि सीएम शिवराज सिंह और नेताप्रतिपक्ष अजय सिंह के बीच फिक्सिंग हुई है। भले ही उसे काल्पनिक आरोप करार दिया गया हो परंतु अजय सिंह अब उसी लाइन पर चलते नजर आ रहे हैं। मप्र के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया के सामने अजय सिंह ने खुलकर कहा कि मप्र में कांग्रेस का कोई चेहरा नहीं होना चाहिए। बताने की जरूरत नहीं कि कांग्रेस की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम फाइनल माना जा रहा है।
रविवार को नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की चेहरा घोषित करने की परंपरा नहीं है। वहीं, प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया ने चेहरे के मामले में अंतिम निर्णय आलाकमान पर छोड़ दिया। इससे पहले एक बार जब अजय सिंह से कमलनाथ और सिंधिया में से किसी एक नाम की संभावना पर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि 'मेरे चेहरे में क्या बुराई है।'
क्या था चित्रकूट फिक्सिंग का आरोप
चित्रकूट चुनाव परिणाम के बाद यह कहा गया था कि यह चुनाव फिक्स था। इसके पीछे पुख्ता तर्क यह दिया गया था कि सीएम शिवराज सिंह ने डीएसपी पन्नालाल अवस्थी को प्रत्याशी बनाने का फैसला कर लिया था, पन्नालाल अवस्थी ने भी अपने पद से रिजाइन कर क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी थी। सीएम शिवराज सिंह ने भी चित्रकूट में ताबड़तोड़ कार्यक्रम किए और भाजपा की जीत सुनिश्चित कर ली थी लेकिन लास्ट मिनट पर प्रत्याशी बदल दिया गया और इस सीट से कांग्रेस की जीत हुई। इसी के साथ एक काल्पनिक आरोप सामने आया कि यह चुनाव फिक्स था। इसके बदले एक डील हुई है जिसके तहत अजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस का सीएम कैंडिडेट बनने से रोकेंगे एवं ऐसा कोई भी मुद्दा नहीं उठाएंगे जो सीएम शिवराज सिंह को सीधा नुक्सान पहुंचाता हो। याद दिला दें कि सीएम शिवराज सिंह ने अजय सिंह के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी ठोक रखा है।
परंपरा नहीं तो इस बार सीएम कैंडिडेट जरूरी क्यों
अजय सिंह का कहना है कि मप्र में कांग्रेस की ओर से सीएम कैंडिडेट घोषित करने की परंपरा नहीं है। यह तर्क ही कांग्रेस को कमजोर करने वाला है। ताजा उदाहरण सामने है। पंजाब में कांग्रेस ने सीएम कैंडिडेट घोषित किया और सरकार बनाई जबकि गुजरात में कांग्रेस के पास सीएम कैंडिडेट नहीं था और कांग्रेस किनारे पर आकर डूब गई। इससे पहले मप्र में कांग्रेस बिना सीएम कैंडिडेट के 3 चुनाव हार चुकी है। चुनाव 2018 की रणनीति में यह विचार किया ही नहीं जाना चाहिए कि परंपरा क्या है और क्या नहीं बल्कि विचार यह होना चाहिए कि परिस्थितियां क्या हैं और सबसे अच्छी रणनीति क्या होगी। किस तरह से सरकार बनाई जा सकती है। बड़ा सवाल यह है कि परंपरा निभाएं या चुनाव जीतने की तैयारी करें।