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आखिरकार पीड़ित ने कोर्ट में अधिकारियों समेत रेलवे विधि विभाग के सहायक पर केस दर्ज कराया। ईसी रेलवे मुख्यालय हाजीपुर के सीपीआरओ राजेश कुमार ने कहा कि ऐसा एक मामला प्रकाश में आया है। इसकी जांच कराई जाएगी। डीपीओ ने जांच की तो अफसरों के भी होश उड़ गए। रिपोर्ट में साफ लिखा गया है कि इस मामले में पूरी जवाबदेही विधि विभाग की है।
जानबूझकर तथ्यों को छुपाया गया। इस रिपोर्ट पर तत्कालीन डीआरएम प्रमोद कुमार ने अपनी टिप्पणी दी और लिखा कि इसका जिम्मेवार कौन है? इस मामले में रिव्यू प्रोसिडिंग बंद किया जाए। इस कागज को भी विधि विभाग ने गायब कर दिया।
जांच में विभागीय घालमेल आया सामने
9 सितंबर 2005 को कैट ने आवेदक के पक्ष में फैसला देते हुए अपने कागजात कार्यालय में जमा कराने को कहा। 25 अक्टूबर 2005, 17 नवंबर 2005 और 26 फरवरी 2006 को क्रमश: सीनियर डीपीओ दोनों डीआरएम के कागजात जमा कराया गया। तीनों आवेदनों पर आवेदक के पक्ष में ही आदेश हुए लेकिन विधि विभाग ने कैट में सूचना दी कि मदन ने कागजात नहीं जमा किए। फिर तत्कालीन डीआरएम प्रमोद कुमार ने 26 फरवरी 2007 को सभी अभ्यर्थियों नोटिस देकर बुलाने को कहा। पर इस नोट शीट को भी गायब कर दिया गया।
यह भी हुआ खेल
वर्ष 1993 में सोनपुर रेल मंडल गोरखपुर जोन का हिस्सा था। उसी दौरान सफाईवाला नाम के पद पर भर्ती की आवश्यकता हुई। आदेश हुआ की पैनल बनाकर भर्ती की जाए। 70 लोगों की सूची तैयार कर जोन में भेजी गई। तभी पैनल के अंतिम से 5 लोगों को परिचालन विभाग में बहाल किया गया। 1996 में पैनल से अलग 20 फर्जी लोगों को सोनपुर मेडिकल विभाग में बहाली दी। फिर 1999 में 49 लोगों की बहाली दी, जिसमें 18 पैनल से और 31 लोग फिर फर्जी तरीके से बहाल हुए। वैशाली के चकगोसा रजौली गांव निवासी मदन प्रसाद यादव का पैनल में नाम होने के बावजूद बहाली नहीं हुई। तब मदन ने 6 दिसंबर वर्ष 2001 को डीआरएम जीडी भाटिया को आवेदन दिया। फिर कैट पटना में मामला दर्ज कराया।