
जस्टिस जी.एस. सिस्तानी और वी. कामेश्वर राव की पीठ के समक्ष अधिवक्ता अनिल सोनी ने कहा कि लिंग परिवर्तपन कराने के कारण नौकरी से निकाले गए पूर्व सैनिक के लिए नौसेना में कोई काम नहीं है। इस पर पूर्व सैनिक के वकील ने पीठ को बताया कि वह इस बारे में अपने मुवक्किल से बात करेंगे कि यह नौकरी वह करना चाहेगा या नहीं। पूर्व सैनिक ने नौकरी से निकलाने जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
हाईकोर्ट ने कहा था कि समायोजित करें
इस मामले में हाईकोर्ट ने 30 अक्तूबर को केंद्र सरकार और नौसेना से सहानुभूति बरतने और वैकल्पिक नौकरी तलाशाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने सरकार और नेवी से कहा था कि आप उन्हें (अधिकारी) अनुशासनहीनता के लिए सजा दे सकते हैं लेकिन साथ ही आप उसे समायोजित भी करने पर विचार करे। पीठ ने सोच में बदलाव का आह्वान करते हुए कहा था कि मौजूदा समय में यह सशस्त्र बल में अपनी तरह का केवल एकमात्र मामला है। पीठ ने नेवी से याचिकाकर्ता को कोई अन्य काम देने पर विचार करने सुझाव दिया था।
कर्मचारी की ईमानदारी पर भी ध्यान दें
हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले को अगल हटकर देखने की जरूरत होने के साथ-साथ मौका भी है। पीठ ने कहा था कि यह अनोखी स्थिति है और यह अपनी तरह का पहला मामला हो सकता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि एक व्यक्ति अपनी लैंगिक पहचान के साथ संघर्षरत है, यदि उसने स्थिति दबाई होती और ये सब बातें गुप्त रखा होता तो यह बड़ा खतरनाक भी हो सकता था। लिहाजा इस बारे में सोचिए और फिर उचित निर्णय लेकर अपना रूख स्पष्ट कीजिए।
लिंग परिवर्तन केे कारण नौकरी से निकालना उचित नहीं
हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता नेवी में नाविक के कार्य के लिए दावा नहीं कर सकता और वह लिपिक का पद स्वीकार कर सकता है ताकि उसका परिवार प्रभावित न हो। साथ ही कहा कि बिना छुट्टी के अनुपस्थित रहने पर कोई भी व्यक्ति दंड का पात्र है लेकिन जहां इस तरह की मेडिकल स्थिति हो, उसे अलग नजरिये से देखने की जरूरत है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब केंद्र सरकार और नेवी की ओर से अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल संजय जैन कहा था कि याचिकाकर्ता कई बार बिना छुट्टी लिए ड्यूटी से गायब रहने की पृष्ठभूमि रही है।