पांडवों ने बनाया था यह मंदिर, गौरी और गजनी भी नहीं तोड़ पाए | neelkanth shiv mandir alwar story

राजस्थान के अलवर में स्थित एक है प्राचीन मंदिर नाम है नीलकंठ महादेव का मंदिर। बताया जाता है कि इस मंदिर की ​स्थापना पांडवों ने की थी। एक रात में यहां भवन, गर्भगृह एवं बावड़ी बना दी गई थी। मंदिर की बावड़ी कभी नहीं सूखती। जिससे शिवलिंग का निरंतर अभिषेक होता रहता है। पांडवों ने यहां एक अखंड ज्योति जलाई थी जो आज भी जल रही है। मुगल हमलावर गौरी और गजनी भी इस मंदिर के पत्थर तक नहीं हिला पाए। 

कहते हैं महाभारत काल में पांडवों ने काशी से लाए गए शिवलिंग की यहां स्थापना की। तब यहां पारा नगर नामक शहर हुआ करता था। इतिहासकारों के महाभारत काल के बाद सन् 1010 में राजोरगढ़ के राजा अजयपाल ने शिवालय को भव्य मंदिर का रूप दिया। यहां करीब 1000 मंदिर बनवाए गए। इनके अवशेष पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में मिले हैं। 

पारा नगर (नीलकंठ) क्षेत्र में राजा रानी के महल, लछुआ की देवरियां और जमीन के भीतर तक 360 सीढ़ियों वाला कुंड महल, बटुक की देवरी, हनुमान देवरी, रखना की देवरी, कोटन की देवरियां, बाघ की देवरी, मुडतोड की देवरी, धोला देव, आशावरी की देवरी, ठाकुर जी की देवरी मंदिर श्रेष्ठ कला शिल्प के नमूनों में शुमार हैं। श्रावण मास में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। सरिस्का के पास होने से यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है।

पांडवों के साथ काशी से आए महादेव

पौराणिक कथा है कि पांडव ने काशी जाकर भोलेनाथ का आग्रह साथ चलने को किया। तो भोले ने शर्त रखी कि चल तो चलूंगा, लेकिन जहां सुबह की जाग हो जाएगी वहीं मेरी स्थापना करनी होगी। वचन देकर पांडव महादेव के साथ चल पड़े। वे बैराठ (विराट नगर) में बाण गंगा नदी के तट पर शिवलिंग स्थापित करना चाहते थे, लेकिन मार्ग में पड़े पारा नगर जाग हो गई। वचन के मुताबिक पांडवों ने पारा नगर (नीलकंठ) में शिवलिंग स्थापना कर दी। भोले के अभिषेक के लिए एक ही रात बावड़ी भी बनाई। पांडवों ने मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योति जला उपासना की जो आज भी जल रही है।

यही मंदिर, जहां गौरी-गजनी कुछ नहीं बिगाड़ सके

करीब एक हजार मंदिरों की इस पावन धरा पर महमूद गज नवी और गौरी जैसे आक्रांताओं ने जमकर विध्वंस किया। मंदिर, देव प्रतिमाएं खंडित कर दीं। लेकिन जब उनके सैनिक नीलकंठ शिवलिंग की ओर बढ़े तलवार के वार से प्रतिमाओं को खंडित करना चाहा तो मंदिर के गर्भग्रह से भयंकर ज्वाला निकली। इससे घबराकर गौरी के सैनिक पीछे हट गए। तीन दिन तक वे यहां आग शांत होने की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन अग्नि धधकती रही। सैनिक भाग खड़े हुए और बादशाह ने आकर शीश नमन किया। गलती स्वीकार कर वापस लौट गया। इसके कारण यह इकलौता मंदिर है, जिसका इस्लामी आक्रांता कोई नुकसान नहीं कर सके।

मंदिर की सार संभाल सरकार के हाथ

नीलकंठ निवासी बताते हैं कि पांडवों के समय से मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर के समीप बावडी भी है। यहां नाथ संप्रदाय के 40 परिवार रहते हैं, जो मंदिर में सेवा पूजा करते हैं। प्रत्येक परिवार का पूजा अर्चना समय निर्धारित है। यह मंदिर सन् 1970 से पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। विभाग का 1-4 का स्टाफ यहां पदस्थापित है। ऐतिहासिक महत्व होने से पुलिस स्टाफ सुरक्षा में तैनात रहता है।

भैरू और आसावरी माता का मंदिर भी है
भोलेनाथ के साथ ही माता आसावरी माता का अंगरक्षक भैरू भी थे। जाग होने पर जहां माता ठहरी वहां उनका मंदिर बना है। जबकि अंगरक्षक भैरू कम सुनता था और जाग की आवाज नहीं सुन सका और आगे बढ़ गया। भैरू के साथ चल रहे पुजारी ने पीछे देखा, तो माता नहीं दिखी। उसने भैरू से कहा माताजी पीछे रह गई हैं, वे नाराज हो जाएगी। तो क्रोध में आकर भैरू ने पुजारी का भक्षण कर लिया और कहा कि आज से यहां मेरी पीठ की पूजा होगी। तब से यहां भैरू की पीठ की ही पूजा अर्चना की जाती है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!