मप्र के इस गांव में दिखाई दिए दुर्लभ सफेद उल्लू, पढ़िए इनका महत्व | wild life mp news

Bhopal Samachar
सिहोरा/उमरियापान। काफी कम दिखाई देने वाले दुर्लभ प्रजाति के सफेद उल्लू अभी भी उमरियापान-ढीमरखेड़ा वन परिक्षेत्र के जंगलों में नजर आ रहे हैं। बुधवार को दो बच्चों के साथ तीन सफेद उल्लू पाली गांव में महुआ के पेड़ के नीचे दिखाई दिये। जिसे देखकर लोग अचंभित रह गए। ढीमरखेड़ा तहसील के पाली निवासी राजेंद्र झारिया ने बताया कि रोज की तरह वे बुधवार को सुबह जब घर के बाहर निकले तो घर के पीछे एक अद्भुत पक्षी देख चौंक गए। पास जाकर देखा तो उन्हें उल्लू टाइप का लगा।

उन्होंने परिवार के सदस्य और अन्य लोगों की हेल्प से उस उल्लू को पकडना चाहा लेकिन बच्चों सहित उल्लू महुआ के पेड़ में चले गए। उल्लू काफी बड़ा है। लोगों ने बताया कि इस तरह का उल्लू कभी नहीं देखा है। जो कि खोखले महुआ के पेड़ के भीतर अपना आशियाना बनाया है। वैसे तो उल्लू की अधिकांश प्रजाति खत्म होती जा रही है। इससे अब सभी दुर्लभ हो गए हैं, मगर यह सफेद रंग वाला उल्लू काफी दुर्लभ है।हालांकि की उल्लू को दिन में कम ही दिखाई देता है।

मनुष्य को लाभ पहुंचाता है ये उल्लू 
बताया जाता है कि सफेद मुंह वाला उल्लू बॉर्न उल्लू कहलाता है। यह पक्षी मनुष्य को आर्थिक लाभ पहुंचाता है। इसकी व‌र्ल्ड में क्म् उपप्रजाति है, जिसमें से तीन उपप्रजाति इंडिया में पाई जाती है। यह जंगली कौए की तरह लगता है। पीठ की ओर से गोल्डन और भूरे रंग का होता है। नीचे पेट की तरफ सफेद रंग का होता है। इनका चेहरा मास्क के समान लगता है। ये सूखी जगह, पुराने मकान, घर और खंडहर के साथ पुराने किलों में निवास करते हैं। ये पक्षी पीपल, बरगद, गूलर जैसे बड़े पेड़ों पर खोखले भाग में भी निवास करते हैं। 

इस उल्लू को व‌र्ल्ड में कई नाम से जाना जाता है। कहीं इसे मंकी फेस्ड आउल कहीं इसे गोल्डेन आउल तो कहीं इसे डेथ आउल और स्कीच आउल के नाम से जाना जाता है। बॉर्न आउल फसलों के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि यह चूहे और उन कीटों को अपना भोजन बनाता है, जो फसल के लिए हानिकारक होते हैं।

दीपावाली में बढ़ जाती है डिमांड
आम सीजन में साधारण पक्षी समझे जाने वाले उल्लू की डिमांड अचानक दिवाली आते ही बढ़ जाती है। दिवाली में तांत्रिक उल्लू की पूजा करते हैं। इससे न सिर्फ इनकी डिमांड बढ़ती है बल्कि इनकी कीमत भी कई गुना बढ़ जाती है। उल्लू जितना दुर्लभ प्रजाति का होता है, कीमत भी उतनी अधिक लगती है। इसी कारण दिन बीतने के साथ उल्लू की तादाद लगातार कम होती जा रही है। अन्य जानवरों की तरह उल्लू भी धीरे- धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रहा है।जबकि कुछ साल पहले तक गांव में अधिक संख्या में उल्लू पाए जाते थे।

दुर्लभ प्रजाति के उल्लू दिखाई देने की जानकारी है। सफेद उल्लू काफी दुर्लभ प्रजाति का होता है।छोटे बच्चों के साथ सफेद उल्लू पेड़ पर अपने ठहरने का स्थान बनाए हुए है। उल्लू धूप सेंकने के लिए पेड़ से बाहर निकलते हैं। कुछ दिनों बाद फिर ये उल्लू जंगलों में चले जायेंगे।  
आई पी मिश्रा, वन परिक्षेत्र अधिकारी ढीमरखेड़ा

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