भोपाल। मध्यप्रदेश में अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन का ऐलान तो सीएम शिवराज सिंह ने कर दिया लेकिन अब इस टोकरी में से कई सांप निकलना शुरू हो गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि यह बहुत लम्बी प्रक्रिया है जबकि सीएम चाहते हैं कि 2018 के चुनाव से पहले इसमें कम से कम कुछ ऐसा हो जाए कि अध्यापकों को भरोसा रहे। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि संविलियन संभव होता तो छत्तीसगढ़ में रमन सिंह पहले ही कर चुके होते। इधर मप्र सरकार ने विधि विभाग से राय मांगी है।
प्रदेश में शिक्षा कर्मी कल्चर 1998 से शुरू किया गया था। इसके तीन साल पहले से ही विभाग में व्याख्याता समेत शिक्षकों के अन्य पदों पर सीधी भर्ती बंद कर दी गई थी। शिक्षा विभाग के सूत्रों की माने तो सहायक शिक्षक पदों पर अंतिम भर्ती 1987 में मिनी पीएससी के जरिए हुई थी। उसके बाद इन पदों पर भर्ती ही नहीं की गई। इसी तरह व्याख्याता पदों पर भी सीधी भर्ती 20 साल से अधिक समय से नहीं हुई है। इन पदों को डांइग कैडर घोषित कर दिया था।
जो शिक्षक रिटायर हुए उनके पद समाप्त मान लिए गए। सीएम की घोषणा के बाद अब इन पदों को फिर से जीवित करने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा अध्यापकों को शिक्षक संवर्ग में शामिल करने में वित्तीय भार के लिए फायनेंस विभाग से जानकारी मांगी गई है। इन हालातों के चलते अध्यापकों का एक वर्ग सरकार की घोषणा से नाखुश है।
यह भी है पेंच:
अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलयन करने में सबसे बड़ा पेंच उनके पदों और वरिष्ठता का भी है। वरिष्ठ अध्यापक को व्याख्याता माना जाता है वहीं अध्यापक को उच्च श्रेणी शिक्षक और सहायक अध्यापक को सहायक शिक्षक पद के समक्ष नियुक्ति दी जाती है। अगर वरिष्ठ अध्यापक को व्याख्याता पद पर नियुक्ति किया जाता है तो पहले से तैनात उच्च श्रेणी शिक्षक और सहायक शिक्षक अपनी वरिष्ठता को लेकर कोर्ट में जा सकते हैं। सरकार इसे लेकर विधि विभाग से राय ले रही है।
तीन विभागों से बुलाई सूची
सीएम की घोषणा के बाद शिक्षा विभाग ने नगरीय प्रशासन, पंचायत और आदिमजाति और अनुसूचित जाति विभाग से वरिष्ठ अध्यापकों, अध्यापकों और सहायक अध्यापकों की सूची बुलाई है। फिलहाल किसी भी विभाग ने सूची नहीं भेजी है। इन तीनों विभागों में तैनात अध्यापकों की सूची को एकजाई कर उनकी वरिष्ठता का निर्धारण भी किया जाना है।