
रिपोर्ट के अनुसार भाजपा और कांग्रेस ही ऐसी राजनीतिक पार्टियां रहीं जिन्हें हर वित्त वर्ष में चुनावी ट्रस्टों की ओर से चंदा मिला है। यह रही चुनावी ट्रस्टों की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि नौ पंजीकृत चुनावी ट्रस्टों में से सिर्फ दो प्रूडेंट और समाज चुनावी ट्रस्ट ने ही दो से अधिक बार चंदा दिया है। 21 पंजीकृत चुनावी ट्रस्टों में से 14 ने चुनाव आयोग को अपने पंजीयन से ही अपने चंदे की नियमित जानकारी दी है। इनमें सत्या/प्रूडेंट चुनावी ट्रस्ट और जनहित चुनावी ट्रस्ट ही ऐसे रहे जिन्होंने सभी चार सालों के चंदे का ब्योरा चुनाव आयोग को पेश किया है।
सत्या ने वर्ष 2016-17 के दौरान अपना नाम बदलकर प्रूडेंट चुनावी ट्रस्ट कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक 11 ऐसे ट्रस्ट हैं जिन्होंने घोषित किया कि उन्हें कोई चंदा नहीं मिला या अपनी जानकारी आयोग को नहीं दी है। कल्याण चुनावी ट्रस्ट ने पंजीयन से अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं पेश की।
क्या हैं चुनावी ट्रस्ट
राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच चंदे के लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए वर्ष 2013 में सरकार ने कंपनियों को चुनावी ट्रस्ट बनाने की अनुमति दी। इन्हें केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) पंजीयन कराना अनिवार्य है। सीबीडीटी के नियम के तहत जो भी कंपनी चुनावी ट्रस्ट बनाएगी वह अपने-अपने चुनावी ट्रस्ट और शेयरधारकों के योगदान के बारे में पूरी जानकारी चुनाव आयोग के पास जमा कराएगी। नियमों के मुताबिक चुनावी ट्रस्टों को हर वित्त वर्ष में अपनी कुल आय का 95 प्रतिशत पंजीकृत राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देना होता है।