इंदौर। चार स्कूली बच्चों सहित पांच लोगों की जान लेने वाले दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) बस हादसे की मजिस्ट्रियल जांच में सर्वाधिक जिम्मेदार स्कूल प्रबंधन को बताया गया है, लेकिन स्पीड गवर्नर की जांच न करने के लिए परिवहन विभाग को भी दोषी माना है। यही नहीं, बायपास रोड पर डिवाइडर की ऊंचाई कम होने सहित नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) की अन्य तकनीकी खामियां भी रिपोर्ट में उजागर की गई हैं।
5 जनवरी को हुए हादसे के करीब तीन सप्ताह बाद जांच अधिकारी अपर कलेक्टर रुचिका चौहान ने शनिवार को कलेक्टर निशांत वरवड़े को जांच रिपोर्ट सौंप दी है। इसमें स्कूल प्रबंधन के साथ ही स्कूल के ट्रांसपोर्ट मैनेजर, सुपरवाइजर आदि को लापरवाह बताया गया है। वहीं स्पीड कंट्रोल के डिवाइस के लिए गलत तरीके से सर्टिफिकेट जारी करने वाली निजी कंपनी रोजमाटा टेक्नोलॉजी को भी जिम्मेदार बताया गया है।
इनकी लापरवाही बनी हादसे का कारण
स्कूल प्रबंधन - सुप्रीम कोर्ट और सीबीएसई ने स्कूलों में सुरक्षा मानकों को लेकर गाइडलाइन तय की है, लेकिन डीपीएस में इसका पालन नहीं हो रहा था। स्कूल बसों में बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से सीसीटीवी कैमरे, जीपीएस और स्पीड लिमिट डिवाइस नहीं लगाए गए थे।
परिवहन विभाग - डीपीएस की बस में स्पीड गवर्नर ठीक से काम नहीं कर रहा था, फिर भी रोजमाटा टेक्नोलॉजी लि. कंपनी ने सर्टिफिकेट दे दिया था। इसी के आधार पर परिवहन अधिकारी रवींद्रसिंह ठाकुर ने फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किया। उन्होंने जांचने की जहमत नहीं उठाई कि स्पीड पर कंट्रोल का ये सिस्टम ठीक से काम रहा है या नहीं?
एनएचएआई की खामी - बायपास रोड पर डिवाइडर की ऊंचाई बहुत कम है। हादसे के दौरान स्कूल बस डिवाइडर पार कर दूसरी तरफ की लेन में आ गई। डिवाइडर की कम ऊंचाई को लेकर एनएचएआई की खामी भी सामने रखी गई है। एनएचएआई के कंसलटेंट और सुपरवाइजर ने रोड निर्माण पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। पीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें तकनीकी खामियां पाई गईं।
ओवर स्पीड और मानवीय भूल हादसे का कारण
मजिस्ट्रियल जांच में स्कूल प्रबंधन के अलावा परिवहन विभाग की लापरवाही भी सामने आई है। ओवर स्पीड और मानवीय भूल इस हादसे का कारण रही। ऐसे हादसों को टालने के लिए कुछ सुझाव भी रिपोर्ट भी शामिल है।पुलिस जांच में यह रिपोर्ट उपयोगी साबित होगी - निशांत वरवड़े, कलेक्टर
रिपोर्ट में ये सुझाव भी शामिल
- स्कूल बसोंं की बॉडी सुरक्षा मानकों के हिसाब से बनाई जाए। बसों में स्पीड लिमिट के लिए डिवाइस भी लगाए जाएं। बस में बैठने वालों के लिए सीट बेल्ट का उपयोग अनिवार्य किया जाए।
- स्कूल बसों के चालक और स्टाफ का पुलिस वेरिफिकेशन होना चाहिए। मेडिकल जांच हो कि वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं या नहीं। वे नशा करके बस तो नहीं चला रहे हैं।
- परिवहन विभाग द्वारा बसों के फिटनेस के लिए ऑटोमेटिक फिटनेस ट्रैक बनाया जाए। इस तरह का सिस्टम लगाया जाए जिससे बसों के फिटनेस में कोई समझौता न हो।
- स्कूलों में पालक-शिक्षक संघ का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से हो। हर तीन माह में ये कमेटी विद्यार्थियों से जुड़े विभिन्न विषयों पर तय मानकों के हिसाब से जांच करे।
- ऐसा सिस्टम विकसित किया जाए जिससे स्कूल बसों की ओवर स्पीड होने पर स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों को तत्काल पता चल जाए।
- बायपास के निर्माण और सुरक्षा को लेकर राज्य स्तरीय की सड़क सुरक्षा कमेटी द्वारा दोबारा जांच कराई जाए। इसके बाद उचित कदम उठाया जाए।