राकेश दुबे@प्रतिदिन। ग्लैमर की दुनिया बालीवुड में शोषण के सिकंजे का चेहरा अंदर के लोग भी जानते हैं और बाहर के लोग भी। तभी तो दो दिन पहले हुए एक ऑनलाइन सर्वे में यह जानना चाहा कि क्या हॉलीवुड की तरह बॉलीवुड भी यौन शोषण के खिलाफ लामबंद होगा? तो लगभग 54 प्रतिशत लोगों ने जवाब में ‘न’ कहा। सवाल हॉलीवुड का हो या फिर बॉलीवुड का , खुलकर बेशक कोई कुछ न कहे, मगर ढके-छिपे तरीके से तो अंदर-बाहर हर किसी को पता होता है कि स्क्रीन टेस्ट से लेकर शूटिंग तक कलाकारों को किस तरह के शोषण से गुजरना पड़ता है। सौ से अधिक हॉलीवुड की मॉडल, कलाकार, नायिकाएं ‘मी टू’ कहते हुए अपनी-अपनी कहानियों के साथ परदे से बाहर निकल आईं। पिछले साल के अंतिम दो महीने हॉलीवुड इस लपट में इस तरह घिर गया कि एक के बाद एक बड़े नाम का खुलासा होने लगा। सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में ही नहीं, हर क्षेत्र से महिलाएं सामने आने लगीं और अपने साथ हुए अन्याय के बारे में खुलकर बताने लगीं। ‘मी टू’ का हैशटैग पिछले साल सोशल मीडिया पर भी खूब ट्रेंड किया और दुनिया भर में जागरूकता की लहर लेकर आया।
भारत की फिल्म इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं है। कुछ समय पहले सोशल मीडिया में पचास के दशक का एक स्क्रीन टेस्ट खूब चल रहा था। 1952 की इन तस्वीरों में निर्माता-निर्देशक अब्दुल राशिद कारदार अपनी फिल्म के लिए नायिकाओं का स्क्रीन टेस्ट लेते दिख रहे थे। इन तस्वीरों को लाइफ पत्रिका के लिए फोटोग्राफर जेम्स बुर्के ने खींचा था। एक देसी और एक विदेशी लड़की किस तरह साड़ी से लेकर टू पीस पहनकर निर्देशक के सामने खड़ी हैं और निर्देशक की निगाहें और हाथ की मुद्राओं को देखकर यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं कि वे दोनों कन्याएं किस तरह शोषित महसूस कर रही होंगी।
ये तस्वीरें तो सचाई का बस एक कतरा भर हैं। ढके-छिपे शब्दों में तो लगभग हर कलाकार बॉलीवुड में कास्टिंग काउच और यौन शोषण की बात करता रहा है, लेकिन खुलकर कभी नहीं कहता। अगर थोड़ा पीछे जाएं, तो कुछ उदाहरण परदे पर ही पा लेंगे।
बात पुरानी है जब रेखा को संज्ञान में लिए जैसे ही कैमरा ऑन हुआ और निर्देशक ने एक्शन कहा, नायक ने रेखा का चुंबन लेना शुरू कर दिया, जो पांच मिनट तक चला। इस हादसे ने रेखा को बुरी तरह हिला दिया था इसी तरह, अपने करियर की शुरुआत में माधुरी दीक्षित से भी जबर्दस्ती बलात्कार का एक दृश्य करवाया गया, यह कहते हुए कि बिना इस दृश्य के फिल्म चलेगी ही नहीं।इस तरह के किस्से बेहद आम हैं। नायिकाएं कुछ भी कहने से डरती हैं। कुछ कहने या शिकायत करने का मतलब है फिल्म से हाथ धो बैठना, करियर का खत्म हो जाना। आज की मुखर अभिनेत्री रिचा चड्ढा तो यहां तक कहती हैं कि हम सब कहना चाहते हैं, ‘मी टू’। पर इससे कोई हल नहीं निकलेगा। नायिका अगर आवाज उठाएगी, तो सबसे पहले उसी पर उंगली उठेगी और कहा जाएगा कि वह गलत है। वह इससे ज्यादा पंगे लेगी, तो उसे काम मिलना बंद हो जाएगा। अस्सी के दशक की अदाकारा मनीषा कोईराला ने कहा था कि बाहर से आई लड़कियों को कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं। इसलिए अधिकांश नायिकाएं अपने परिवार के किसी सदस्य को शूटिंग पर साथ ले जाती हैं। कुछ नायिकाएं तो अपने लिए किसी निर्माता, निर्देशक या नायक के रूप में कवच तलाश लेती हैं। एक शक्तिशाली व्यक्ति के साथ होने का ठप्पा लगने के बाद दूसरे उनका कम फायदा उठाते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।