
इसके विपरीत कुछ मोर्चों पर हमारी कमजोरी भी दिखती है। पहली और बड़ी कमजोरी युवाओं में मौजूद उतावलापन है। उन्हें सचमुच अनुभव कमाने और धैर्य रखने की जरूरत है। असल में, पिछले कुछ वर्षों में हमारी यह पीढ़ी ‘इंटरनेट जेनरेशन’ में बदल गई है। धैर्य रखना हमारे युवा भूलते जा रहे हैं। यह समझने की जरूरत है कि किसी बड़े काम को करने के लिए लंबे वक्त की दरकार होती है। हमें अपने जीवन से उन समयों को खर्च करना होगा, तभी सफलता कदम चूमेगी। इंटरनेट पीढ़ी सब कुछ तेजी से करने में विश्वास रखती है, इसलिए उसका सब्र खोना हमारे देश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। अगर इंतजार का धैर्य नहीं होगा, तो युवा निराश हो सकते हैं और जो वे करना चाहते हैं, कतई नहीं कर पाएंगे। अगली किसी पहल की तो वे सोच भी नहीं सकते। नौजवानों में निराशा बढ़ने पर कई पीढ़ियां प्रभावित होती हैं। आजादी हासिल करने में हमें 90 साल लगे थे।
एक और तथ्य युवा भूल जाते हैं कि हमसे पहले वाली पीढ़ी के लोगों ने भी कुछ करने की कोशिश की थी। उनके प्रयासों को बेकार समझने की भूल न करें। हरसंभव उनसे सीखने का प्रयास करें। कुछ नया वे तभी कर पाएंगे, जब पुरानी गलतियों या सफलताओं को देखकर नई जगहों पर कदम रखेंगे। बड़े-बुजुर्गों की उपलब्धियों को नकारकर अपनी ऊर्जा फिर से उसी काम में खर्च करना उचित नहीं। अनुभव मूल्यवान है। नए आइडिया का सृजन तभी किया जा सकता है, जब अनुभव से सीखा जाए और उसका गहन विश्लेषण किया जाए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।