
भारत म्यांमार से होते हुए थाईलैंड तक सड़क बनाने की पहल कर रहा है। आज नहीं तो कल, उसे पूर्वी एशिया से सड़क के माध्यम से जुड़ना होगा। ऐसे में भारत के मध्य भाग से पूर्वी भाग के समय में लगभग दो घंटे का अंतर, विकास व उद्यमिता को गहरे से प्रभावित करेगा। भारत सरकार ‘एक्ट ईस्ट’ पर काफी समय से जोर दे रही है। इसके तहत पूर्वी प्रदेशों के लिए सरकार पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय, प्रभावी और जनोपयोगी नीति अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। कुछ समय पहले भारत सरकार ने पूर्वोत्तर भारत को तेज, सुविधाजनक तथा सुरक्षित संपर्क साधन के तौर पर लोहित नदी सादिया-धोला पुल दिया है। यह सही समय है कि केंद्र सरकार पूर्वी भारत के लिए काफी समय से उठ रही मांग के तौर पर नए टाइम जोन को स्वीकार कर ले। भारत इस मामले में विश्व के बड़े देशों, जैसे रूस से सबक ले सकता है, जहां 11 टाइम जोन हैं। हमारे पड़ोसी और चिर प्रतिद्वंद्वी देश चीन में भी पांच टाइम जोन प्रयोग में लाए जाते हैं।
पूर्वोत्तर के लिए नया टाइम जोन अपनाकर भारत उस भाग के जनबल और प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा बेहतर, कुशल व प्रभावी दोहन कर सकेगा। पूर्वोत्तर भारत के विकास के लिए वहां के पर्यटन में असीम संभावनाएं छुपी हैं जो एक मानक व व्यावहारिक समय जोन न होने की वजह से पूर्ण रूप में विकसित नहीं हो सकी है। आज के इस तेज और गतिशील विश्व में जहां पर पल-पल की बहुत कीमत हो गई है, भारत के लिए दो घंटे व्यर्थ गुजरें, यह उचित नहीं कहा जा सकता। भारत सरकार को इस मसले पर विचार करना चाहिए। संस्कृति विभाजन की बात कहने वालों को भी वैज्ञानिक तरीकों से सोचना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।