राकेश दुबे@प्रतिदिन। नए विश्व विकास संकेतकों पर भारत की तुलना ब्राजील और चीन से करने पर यह रोचक बात सामने आई कि भारत में विकास के नाम पर हल्ला ज्यादा है। जनसंख्या वृद्धि को पैमाना माने तो ब्राजील, चीन और भारत की आबादी क्रमश: 0.8, 0.5 और 1.1 फीसदी बढ़ी। जाहिर है भारत में जनसंख्या नीति पर निरंतर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। वर्ष 2016 में भी 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर प्रति 1,000 में 43 के स्तर पर रही। ब्राजील में यह 15 और चीन में केवल 10 रही। सेकंडरी स्कूल में दाखिले के मामले में भी हम दोनों देशों से पीछे रहे। चाहे जो भी हो लेकिन समग्रता में देखें तो उक्त दोनों देशों की तरह भारत ने भी आबादी को सीमित रखने और मृत्यु दर को कम करने में काफी सफलता हासिल की है। हालांकि भारत को अगर इन देशों की बराबरी हासिल करनी है तो उसे अपनी क्रियान्वयन क्षमता में सुधार करना होगा।
कृषि क्षेत्र की हालत के चलते गांवों से शहरों की ओर पलायन देखने को मिलता है। शहरी आबादी की वृद्धि इसका पैमाना है। उपरोक्त तीनों देशों में इस दर में गिरावट आई है जो कि अच्छी बात है। बहरहाल, चीन ने शहरी आबादी में वृद्धि को सबसे तेजी से कम किया है लेकिन इसके बावजूद वहां यह दर सबसे ज्यादा है। वृहद आर्थिक संकेतकों की बात करें तो भारत की जीडीवी वृद्धि दर 2016 में चीन से थोड़ी ज्यादा रही हालांकि 2017 में यह दोबारा कम हो सकती है। इसके अलावा 2010 के बाद से जीडीपी वृद्धि के मामले में दोनों देशों ने कुछ अंक गंवाए। सन 2016 के जीडीपी आंकड़ों को देखें तो चीन की उच्च औद्योगिक हिस्सेदारी जीडीपी में 40 फीसदी बनी हुई है जबकि भारत की यह हिस्सेदारी 29 फीसदी रह गई है।
उच्च सेवा क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी 54 फीसदी जबकि चीन की 52 फीसदी है। आंकड़ों से पता चलता है कि विश्व अर्थव्यवस्था से संपर्क के मामले में चीन भारत से आगे है। जहां तक जीडीपी के प्रतिशत की बात है तो दोनों देशों को आयात और निर्यात के मामले में काफी नुकसान हुआ। यह भी विश्व व्यापार को लगे झटके को ही दर्शाता है। इसका असर सकल पूंजी निर्माण पर भी पड़ा है। जीडीपी के संदर्भ में देखें तो दोनों देशों में यह घटा है। हालांकि भारत में यह गिरावट कहीं अधिक तेज रही। यही वजह है कि 2016 में चीन के जीडीपी में एफडीआई की हिस्सेदारी 44 फीसदी रही जबकि भारत में यह 30 फीसदी ही रही। रोचक बात है कि सन 2016 में जीडीपी के प्रतिशत में सैन्य व्यय भारत में ज्यादा रहा। 2.5 फीसदी के साथ यह चीन और ब्राजील दोनों से ऊपर रहा। हालांकि भारत और ब्राजील में यह चरणबद्ध ढंग से कम होता जा रहा है। चीन में यह सन 2000 से 2016 के बीच 1.9 फीसदी के साथ स्थिर है। ऐसे में इस सूचना की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं।
वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात के प्रतिशत के रूप में अंतरराष्ट्रीय ऋण निपटान की बात करें तो सन 2016 में तीनों देशों में यह क्रमश: 51,5 और 17 प्रतिशत रहा। ब्राजील की अर्थव्यवस्था कर्जग्रस्त है इसलिए उसे अंतरराष्ट्रीय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। चीन ने अत्यधिक अवमूल्यित मुद्रा व्यवस्था अपनाई है ताकि निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके और आयात को कम किया जा सके। अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत होती तेल कीमतों और रुपये के अवमूल्यन के बीच भारत को सावधानी बरतनी होगी। यह बात ध्यान में रखनी होगी कि वर्ष 2016 में ब्राजील में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत की तुलना में दोगुना था। जबकि चीन का चार गुना। कुछ सूक्ष्म संकेतकों की बात करें तो मोबाइल उपभोक्ताओं की तादाद तीनों देशों में बढ़ी है। वर्ष 2016 में भारत में प्रति 100 व्यक्ति जहां 87 मोबाइल थे, वहीं चीन में 97 और ब्राजील में 119। आबादी के प्रतिशत के रूप में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में भारत 30 फीसदी के साथ काफी पीछे रहा। चीन 53 और ब्राजील 60 के आंकड़े के साथ अच्छी स्थिति में रहे। भारत के 87 फीसदी मोबाइल उपभोक्ता निजी कंपनियों की सेवाएं लेते हैं।
भारत को अगर चीन के समकक्ष बनना है तो उसे बदलाव की प्रक्रिया को तेज करना होगा। अनदेखी नहीं की जा सकती है कि गरीबी, आय के वितरण और संपदा एकत्रीकरण में भारत का रिकॉर्ड तमाम आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के बीच बहुत कमजोर रहा है। भारत को बहुत कुछ करना है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।