
भोपाल में 26 अगस्त 2016 की बैठक अभी भी सबको याद है। उस दिन संघ के एक बड़े अधिकारी ने भी महात्मा गांधी को लेकर संघ व भाजपा की बनाई जा रही 'गांधविरोधी' छवि का जिक्र किया। बैठक में विरोधियों के 'दुष्प्रचार' से निपटने के लिए कारगर रणनीति बनाने पर जोर दिया गया सुझाव तो यह भी आया कि इस हेतु एक विशेष अभियान चलाया जाए।
विधानसभा चुनाव के दौरान संघ-भाजपा की यह जोखिम विहीन रणनीति थी। यहाँ तक कहा गया की 'देश के ज्यादातर लोग जिन्हें पूजते हैं, सत्ता पाने के लिए हमें भी पूजना होगा।' यही से भाजपा ने पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती धूमधाम से मनाई और खुद को दलितों का हिमायती बताने की। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद की जन्मभूमि पर विशेष कार्यक्रम किया गया और अब खुद को महात्मा गांधी का अनुयायी बताने की रणनीति के तहत स्वच्छ भारत अभियान के लोगो में महात्मा गांधी के चश्मे का उपयोग।
तब कांग्रेस उपाध्यक्ष और अब अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का संघ से नाता बताया था इसको लेकर न्यायालय में प्रकरण अभी भी चल रहा है। संघ का तर्क है कि गोडसे महात्मा गांधी के सीने को गोलियों से छलनी करने से पहले संघ से इस्तीफा दे चुका था, वैसे संघ के नजदीकी इस तरह की कोई प्रणाली संघ में होने से ही इनकार करते हैं। इसलिए उसे संघ का आदमी माना जाये या न माना जाए इसका कोई ठिकाना अब तक नहीं है। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने गाँधी को चतुर बनिया कहा था। फिर माफ़ी भी मांग ली थी। 30 जनवरी पर गाँधी के मानने वालों से इतना अनुरोध है, कि गाँधी को बिना किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रयोजन के याद करेंगे तो यह गाँधी के साथ न्याय होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।