
जम्मू-कश्मीर में हम अपने रक्षा बजट का 80 प्रतिशत खर्च कर रहे हैं जबकि वहां से हमें चवन्नी का भी लाभ नहीं होता। पिछले साल पाकिस्तान ने पत्थरबाजों को इनाम का ऐलान करके कश्मीर को 2 माह तक जलाया था। भारतीय सेना ने आॅपरेशन आॅलआउट चलाया परंतु इसमें केवल वही अपराधी मारे जा सके जो आतंकवादी की श्रेणी में आते थे। जबकि पाकिस्तान ने तो जम्मू-कश्मीर में नया आतंकवाद शुरू कर दिया है। वो ना केवल पत्थरबाजों को प्रशिक्षण और इनाम दे रहा है बल्कि जम्मू-कश्मीर की आतंरिक राजनीति में भी आधिकारिक दखल देने लगा है।
कासगंज से ज्यादा जरूरी मुद्दा है 'शोपियां फायरिंग'
अपने रास्ते जा रही गढ़वाल रेजिमेंट की एक यूनिट पर 250 लोगों ने हमला किया। 14 ट्रक तोड़ दिए गए, 1 वाहन बर्बाद हो गया। आर्मी के 7 अधिकारी पत्थरबाजी से घायल हुए। भीड़ आगे बढ़ती जा रही थी और उनकी संख्या भी बढ़ती जा रही थी। आर्मी ने बचाव में हवाई फायर किए। भीड़ फिर भी बढ़ती आ रही थी। हमलावरों ने एक जूनियर कमीशंड अफसर को घेर लिया। उसके हथियार छीन लिए। अपने अफसर को बचाने के लिए आर्मी यूनिट ने गोली चलाई। इसमें 2 हमलावर मारे गए।
पाकिस्तान बन गया नेताप्रतिपक्ष
अब इस मामले में अजीब तरह की राजनीति चल रही है। जम्मू-कश्मीर की पीडीपी-बीजेपी सरकार ने पूरी आर्मी यूनिट के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया। वो यूनिट का नेतृत्व कर रहे मेजर आदित्य के खिलाफ कोर्ट आॅफ इन्क्वायरी चाहते हैं। पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय इस मामले में इस तरह से बयान जारी कर रहा है मानो वो जम्मू-कश्मीर में सक्रिय राजनीतिक दलों में से एक हो।
कासगंज नहीं कश्मीर में नारे लगाओ
बरेली के डीएम आर विक्रम सिंह सही कहते हैं, कासगंज के मुस्लिम तो हमारे अपने हैं। उनका डीएनए जांच लो। समस्या तो कश्मीर में घुस आए पाकिस्तानी हैं। वहां आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। कश्मीरी चोले के अंदर कौन छिपा है पता ही नहीं चलता। देश भर की ऐसी तमाम युवा शक्ति को चाहिए कि वो संगठित हो और कासगंज या ऐसे मोहल्ले नहीं बल्कि कश्मीर में जाकर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाएं। वहां घुस आए पाकिस्तानियों को बता दें कि भारत का आम नागरिक ना केवल श्रीनगर के लालचौक पर ना केवल तिरंगा फहरा सकता है बल्कि सरकार अनुमति दे तो पीओके में घुसकर पाकिस्तानी पार्टियों को खदेड़ सकता है।