
पूर्ण पाठ को गौर से देखें तो स्पष्ट होता है कि इसमें संसद के पिछले सत्र में तीन तलाक से संबंधित विधेयक की चर्चा है जो लोक सभा से पारित हो चुका है, और राज्य सभा में लंबित है। राष्ट्रपति ने राज्य सभा से भी इस विधेयक के पारित होने की संभावना जताई, कोई शक नहीं कि सरकार का यह एक प्रगतिशील कदम है, और देर सबेर राज्य सभा भी इसे पारित कर देगी। इस बार राष्ट्रपति ने लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराने पर जोर दिया। सच है कि अलग-अलग चुनाव होने से संसाधनों पर बोझ पड़ता है, विकास प्रक्रिया भी बाधित होती है प्रधानमंत्री मोदी भी समय-समय पर यह मुद्दा उठाते रहे हैं, और इसे एक महत्त्वपूर्ण चुनाव सुधार के रूप में देखते हैं. हालांकि, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस मसले को दूसरे नजरिए से देखती है। पिछले दिनों चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधान सभा चुनाव को एक साथ नहीं होने दिया तब कांग्रेस ने सवाल खड़े किए थे। फिर भी दोनों चुनाव साथ-साथ कराने संबंधी प्रस्ताव सराहनीय है, हालांकि इसके क्रियान्वयन में कुछ तकनीकी बाधाएं आ सकती हैं। जैसे विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग है।
अभी यह कहना मुश्किल है कि सरकार का यह प्रस्ताव कब मूर्त रूप ले पाएगा। अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर अभिभाषण में साफ तौर पर स्पष्ट किया गया कि उनकी सरकार तुष्टीकरण नहीं सशक्तीकरण में भरोसा रखती है। मोदी सरकार के हज सब्सिडी खत्म करने संबंधी निर्णय को राष्ट्रपति ने इसी नजरिये से देखा है। इस सरकार ने इस सब्सिडी की रकम मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा पर खर्च करने का निर्णय किया है। इससे मोदी सरकार का नजरिया सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के एजेंडे पर यूपीए की सरकार से भिन्न दिखता है।
सत्र की शुरुआत के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के दोनों सदनों जिन उपलब्धियों और भावी योजनाओं का उल्लेख किया उसके आधार पर कहा जा सकता है कि उनका अभिभाषण आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राजनीति की शतरंज में सरकार की रणनीति का खुलासा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।