राकेश दुबे@प्रतिदिन। वित्त मंत्री अरुण जेटली कुछ भी कहें आने वाला बजट चुनौतीपूर्ण होगा। पहली चुनौती तेल की बढ़ती कीमतों से जुड़ी है। किसी ने भी नहीं सोचा था कि कच्चा तेल 68 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच जाएगा। समय के साथ ही साफ हो पाएगा कि इसका घरेलू तेल कीमतों एवं मुद्रास्फीति, पेट्रोलियम उत्पादों पर देय करों में कटौती का बजट और व्यापार घाटे पर क्या असर पड़ता है? नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वर्ष 2014-16 की अवधि में तेल कीमतों के 110 डॉलर से 30 डॉलर प्रति बैरल पर आ जाने से बोनस आर्थिक वृद्धि हुई थी लेकिन कीमतें बढऩे से यह नीचे आ जाएगी। मुद्रास्फीति बढऩे का खतरा इसलिए भी अधिक है कि खाद्य कीमतें बढ़ी हुई हैं। इस वजह से भारतीय रिजर्व बैंक के लिए निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती नहीं कर सकेगी।
इस बजट में नियोजित अनुमान से अधिक राजकोषीय घाटा होने के भी आसार दिख रहे हैं जिससे केंद्र एवं राज्यों का पहले से ही बढ़ रहा घाटा और भी बढ़ेगा। इससे बॉन्ड की पहले से ही ऊंची दरों के और अधिक होने की संभावना दिख रही है। आखिर महंगा पैसा तीव्र विकास की संभावना को भी कम करता है। चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि का 'अग्रिम' अनुमान 6.5 प्रतिशत है जो 6.7 प्रतिशत के पिछले अनुमान से कम है। अगले वित्त वर्ष में भी आर्थिक वृद्धि के अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के 7.4 प्रतिशत के अनुमान से कम ही रहने के आसार हैं लेकिन कम आधार-मूल्य होने और निर्यात गतिविधियों में वृद्धि से इसके सात फीसदी का दायरा पार कर जाने की संभावना जरूर है। भले ही यह राहत की बात होगी लेकिन सच यह है कि निवेश का आंकड़ा एक दशक पहले के स्तर पर पहुंचता दिख रहा है।
ऐसी स्थिति में अधिक राजस्व उछाल की उम्मीद करना बेमानी होगा। वैसे अगर सरकार आम चुनावों के पहले के साल में कुछ घोषणाओं के बारे में सोचती है तो इसकी जरूरत पड़ेगी। इसका मतलब है कि खर्च पर लगाम लगानी सरकार की सबसे बड़ी अहमियत होनी चाहिए। दरअसल यह भी अभी साफ नहीं है कि जीएसटी राजस्व 91,000 करोड़ रुपये के स्तर तक कब पहुंच पाता है? इस साल आर्थिक मनोदशा एवं प्रदर्शन में बदलाव होने की उम्मीद की गई थी लेकिन तस्वीर उतनी आकर्षक नहीं होने से वित्त मंत्री को अभी तक आजमाए न गए राजस्व स्रोतों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। शेयरों पर लंबी अवधि में हुए पूंजीगत लाभ पर कर लगाना इसका सबसे स्वाभाविक जरिया हो सकता है। इस तरह का कर लगाना जोखिमों से परे नहीं होगा। शेयर बाजार पर इसका असर होना तो जाहिर है लेकिन विदेशी निवेशक भी निवेश के लिए कहीं और देख सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।