
वैसे तो इसका वजन करीब नौ टन है। इस चीज का वजन धरती की सतह तक पहुंचते-पहुंचते एक से चार टन ही रह जाने का अनुमान है। चार टन और उसका धरती पर गिरने का वेग कुछ भी कर सकता है। 1979 में 75 टन से भी ज्यादा वजनी नासा का स्पेस स्टेशन स्काईलैब गिरा था, तब दुनिया भर में घबराहट का आलम था लेकिन वह बिना कोई नुकसान पहुंचाए समुद्र में गिर कर नष्ट हो गया, काश इस बार भी ऐसा ही हो।
भले ही वैज्ञानिक यह कहें कि इस स्पेस स्टेशन का के गिरने से कोई समस्या न हो, पर इतना तय है कि यह अपने पीछे कुछ अवशेष जरूर अंतरिक्ष में छोड़कर आएगा। दरअसल, पृथ्वी की कक्षा में घूम रही छोटी चीजें न तो नीचे आती हैं, और न ऊपर जाती हैं। वे त्रिशंकु की तरह वहीं घूमती रहती हैं और अंतरिक्षयानों, उपग्रहों, स्पेस स्टेशनों के लिए खतरे का सबब बनी रहती हैं।
पिछली अर्ध शताब्दी में जैसे-जैसे विभिन्न देशों की अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियां बढ़ी हैं, वहां धरती से पहुंचने वाला कचरा बढ़ता ही जा रहा है। जुलाई 2016 में अमेरिकी स्ट्रैटिजिक कमान ने निकट अंतरिक्ष में 17852 कृत्रिम वस्तुएं दर्ज की थीं, जिनमें 1419 कृत्रिम उपग्रह शामिल थे। मगर यह तो सिर्फ बड़े पिंडों की बात थी। इससे पहले 2013 में हुए अध्धयन में 1 सेंटीमीटर से कम आकार से बड़े 17 करोड़ कचरे अन्तरिक्ष में पाए गए थे और 1 से 10 सेंटीमीटर के बीच आकार वाले कचरों की संख्या 6,70,000 पाई गई थी। इससे बड़े आकार वाले कचरों की अनुमानित संख्या 29000 बताई गई थी। अंतरिक्ष में आवारा घूमती ये चीजें किसी भी अंतरिक्ष अभियान का काल बन सकती हैं। इस मुश्किल को बेकाबू होने से रोकने का एक ही तरीका है कि हमारे द्वारा वहां भेजी गई किसी भी चीज का कोई हिस्सा अलग होकर अंतरिक्ष में न छूटे। बारीक गणना में सिद्धहस्त अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों को इस दिशा में सोचना चाहिए की यह कचरा उनके ही किसी अभियान पर पानी फेर सकता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।