इलाहाबाद। ALLAHABAD HIGH COURT ने एक मामले में अहम फैसला (JUDGEMENT) सुनाते हुए कहा है कि किसी अस्थाई कर्मचारी (TEMPORARY EMPLOYEE) को नियमित जांच किये बिना (WITHOUT INVESTIGATION) सजा (PUNISHMENT) के तौर पर नौकरी से उसे बर्खास्त (TERMINATE) करना गलत है। अदालत के मुताबिक़ बर्खास्त करने से पहले नियमित विभागीय जांच (DEPARTMENTAL ENQUIRY) किया जाना जरूरी है। इतना ही नहीं बर्खास्तगी जैसी बड़ी सजा के लिए ठोस आधार भी बेहद जरूरी है। कोर्ट ने इसी आधार पर मुजफ्फरनगर जिले में सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास विभाग के कल्याणकर्ता याची की बर्खास्तगी को रद्द (ORDER) कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि याची नौकरी से रिटायर हो चुका है। ऐसे में उसे तीन माह में रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले आर्थिक लाभ का भुगतान किया जाय।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने आर.एस त्यागी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची 10 जनवरी 1986 में अस्थायी रूप से नियुक्त हुआ। दो साल की परिवीक्षा अवधि पूरी करने के बाद वह अस्थायी कर्मी के रूप में कार्यरत रहा और बिना नियमित जांच किये 17 दिसम्बर 1992 को बर्खास्त कर दिया गया।
याची पर आरोप है कि उसने दो अन्य सहकर्मियों के साथ मिलकर सार्वजनिक लकड़ी बेच दिया। दोनों कर्मी स्थायी थे, इसलिए उन्हें निलम्बित कर जांच का आदेश दिया गया। सीडीओ ने प्रारंभिक जांच में याची व दो अन्य को कदाचार का दोषी माना और जिलाधिकारी ने गोपनीय जांच के बाद याची को अस्थायी कर्मी होने के नाते बर्खास्त कर दिया। जिसे चुनौती दी गयी।
कोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी और जवाब मांगा। सरकार का कहना था कि अस्थायी कर्मी को बिना जांच के हटाया जा सकता है। उसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने नेहरू युवा केन्द्र केस में सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि बिना सुनवाई का मौका दिये बर्खास्तगी नहीं की जा सकती।
जिलाधिकारी ने पीठ पीछे गोपनीय जांच कर बर्खास्तगी की संस्तुति की। जिस पर याची को बिना पक्ष सुने बर्खास्त कर दिया गया। याची का कहना था कि शासनादेश से सभी अस्थायी कर्मियों को स्थायी कर दिया गया था किन्तु याची के संबंध में याचिका के चलते औपचारिक आदेश जारी नहीं किया गया। (TEMPORARY | IN-REGULAR | SAMVIDA | CONTRACT )