
अमेरिका के क्लायमेंट प्रिडिक्शन सेंटर की जनवरी की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से मार्च तक ला-नीना ज्यादा एक्टिव रहेगा। इससे प्रशांत महासागर का टेम्परेचर कम रहेगा। इसका असर यह होगा कि पूरी दुनिया में कड़ाके की ठंड रहेगी। इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, ला नीना के जून तक एक्टिव रहने का अनुमान है। इसलिए इसका असर गर्मी के मौसम में भी दिखाई देगा। उस दौरान बेमौसम बरसात की संभावना है। भारत के कई इलाकों में मई के महीने में बारिश हो सकती है जिसके कारण फसल चौपट हो जाएंगी।
जनवरी से सितंबर तक ऐसा रह सकता है मौसम
जनवरी से मार्च : सेंट्रल इंडिया में कड़ाके की ठंड, बर्फबारी, घना कोहरा।
मार्च से मई : बे मौसम बारिश।
मई से जुलाई :साउथ और सेंट्रल इंडिया में अच्छी बारिश।
जुलाई से सितंबर:पूरे देश में अच्छी बारिश।
क्या कहते हैं भारत के एक्सपर्ट
महाराष्ट्र के परभणी स्थित वसंतराव नाइक मराठवाड़ा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की संशोधन कमेटी के सदस्य और एग्राे मैट्रालाॅजिस्ट डॉ. रामचंद्र साबले के मुताबिक- उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड की संभावना ज्यादा है। औरंगाबाद के एमजीएम स्पेस रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर श्रीनिवास औंधकर कहते हैं कि मार्च तक कड़ाके की ठंड और उत्तर व मध्य भारत में ज्यादा ठंड रहने से खेती, बिजनेस पर बड़ा असर पड़ेगा।
क्या होंगी दिक्कतें?
घने कोहरे और धुंध के कारण रेल, हवाई जहाज रद्द होना और इनमें देरी होने की घटनाएं बढ़ेंगी। उत्तर भारत में शीत लहर कायम रहने का अनुमान है।
उत्तर भारत इस साल ठंड का मौसम ज्यादा दिन रहने के आसार हैं। महाराष्ट्र, गुजरात में अब तापमान में बढ़ोतर हो सकती है।
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि शीत लहर के कारण खेती को नुकसान होता है। अगर फरवरी में भी मिनिमम टेम्परेचर कम रहेगा तो गेहूं की फसल में दाना भरने (ग्रेन फिलिंग) की प्रॉसेस पर असर होगा। हालांकि सब्जी की फसल पर पानी देने से काम चल जाएगा, लेकिन ज्यादा ठंड पड़ी तो नुकसान हो सकता है।