भोपाल। प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने दलित वोट बैंक को अपने खाते में एफडी कराने के लिए ना केवल 'माई का लाल' वाला बयान दिया बल्कि एक कदम आगे बढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर दी परंतु अब शिवराज सिंह अपने ही फैसले पर पछता रहे हैं। पहली बार किसी सरकार को आरक्षण विरोधियों के कारण तनाव में देखा जा रहा है। नए साल में मंत्रियों और अफसरों के साथ हुई मीटिंग में शिवराज सिंह की खुद के फैसले पर नाराजगी जताई और बीच का रास्ता खोजने के आदेश दिए ताकि इज्जत भी बची रहे और आरक्षण विरोधियों का गुस्सा भी कम हो जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि पदोन्न्ति में आरक्षण का मामला न्यायालयीन प्रक्रिया में लंबित हैं। इसके कारण बिना पदोन्न्ति कई अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इससे उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है जो इसके हकदार हैं। यह बेईमानी है। सामान्य प्रशासन विभाग इसके लिए तत्काल नीति बनाकर लाए।
जो रिटायर हो गए उन्हे भी फायदा पहुंचाना है
मंत्रालय में मंगलवार को हुई मंत्रियों-अधिकारियों की संयुक्त बैठक में मुख्यमंत्री ने विभागवार लक्ष्य तय किए और सभी को निर्देश दिए कि हर हाल में इन्हें पूरा किया जाए। सामान्य प्रशासन विभाग की चर्चा करते हुए उन्होंने पदोन्न्ति में आरक्षण के मुद्दे को उठाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि कई अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्न्ति सेवानिवृत्त हो गए। जब तक न्यायालय से फैसला नहीं आता तब तक कैसे लाभ दिया जा सकता है, इसकी नीति बनाई जाए। साथ ही यह भी देखा जाए कि जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन्हें किस तरह लाभ दिया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि बिना पदोन्न्ति सेवानिवृत्त हो जाना किसी भी सूरत में ठीक नहीं है। सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने साफ कहा कि अन्याय हो रहा है और यह बेईमानी है।
चुनावों में लगातार बन रहा है मुद्दा
पदोन्न्ति में आरक्षण का मुद्दा हर चुनाव में जोर-शोर से उठ रहा है। चाहे अटेर विधानसभा का उपचुनाव हो या फिर चित्रकूट, सपाक्स (सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था) ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया है। प्रदेश में मुंगावली और कोलारस विधानसभा के उपचुनाव प्रस्तावित हैं। बदरवास में सपाक्स का सम्मेलन हो चुका है और मुंगावली में तैयारी की जा रही है।