भोपाल। गुना शिवपुरी से कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को गणेश शंकर महाविद्यालय मुंगावली के प्राचार्य के लिए निलंबन के मामले में शिवराज सिंह चौहान की मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार का नोटिस दिया। सिंधिया ने नोटिस में कहा कि मध्य प्रदेश की सरकार में राजनीतिक द्वेष के चलते एक निर्वचित सांसद के रूप में उनके कर्तव्य पालन में बाधा उत्पन्न की है। नोटिस में उल्लेख है कि प्राचार्य ने उन्हें विधिवत रूप लिखित में आमंत्रित किया। जहाँ उनका उद्देश्य एक स्थानीय सांसद के नाते अपने संसदीय क्षेत्र के कालेज में सांसद निधि से विधार्थियों के हित में कार्य करने का था किन्तु मप्र की सरकार ने इस विषय में राजनतिक द्वेष के कारण सांसद सिंधिया के कार्य में व्यवधान डाला।
इसके अतिरिक्त मप्र सरकार ने कालेज परिसर में राजनितिक गतिविधियों का असत्य आरोप लगते हुए एक ईमानदार शासकीय अधिकारी को सिर्फ इसलिए निलम्बित कर दिया कि उन्होंने अपने क्षेत्रीय सांसद को महाविधालय में क्यों बुलाया। मप्र सरकार ने निलम्बित प्राचार्य बीएल अहिरवार पर यह आरोप लगाया कि राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत आयोजित कार्यक्रम में राजनितिक दल के पोस्टर लगे थे, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं हुआ है। अपितु सच है कि प्राचार्य पर झूठे आरोप लगने वाली सरकार, खुद ही विभिन्न संस्थानों में भाजपा से जुड़े राजनितिक चिन्हों का प्रयोग कर आमंत्रण पत्र भेज रही है। सिंधिया ने नोटिस में इस सबके प्रमाण भी संलग्न किए।
सिंधिया ने नोटिस में कहा कि उनका महाविधालय में आयोजन पूर्णत गैर राजनितिक था, विधार्थियों से उनका संवाद सिर्फ विधार्थियों की समस्याओं और उनकी सुविधाओं को लेकर था।नाकि किसी प्रकार का कोई राजनितिक सम्वाद था। सिंधिया ने मप्र सरकार को यह चुनौती भी दी कि सरकार के पास इस बारे में सिर्फ राजनीतिक बदले की भावना से लगाए गए असत्य आरोप हैं, कोई ठोस प्रमाण नहीं। यदि प्रमाण है तो सरकार पेश करे।
सिंधिया ने नोटिस में संसदीय प्रकिया की पुस्तक "कौल एंड शकधर " का हवाला देते हुए मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार को कटघरे में खड़ा किया। जिस के अनुसार एक निर्वाचित सांसद को उसकी सांसद निधि के उपयोग के कार्यों से रोकना /रोकने का प्रयास विशेषाधिकार हनन है।
उन्होंने कहा कि यह सब स्पष्ट करता है कि सांसद सिंधिया को आमंत्रित किए जाने की कारण ही एक अधिकारी का बिना कारण बताओ नोटिस दिए एवं उनका पक्ष जाने बिना किया गया निलम्बन राजनितिक दुर्भावना से किया गया कार्य है। जिसका मूल उद्देश्य एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि को उसके अधिकारों से वंचित करने का है। जहाँ पहले से ही शिक्षकों की संख्या कम हो वहां सरकार द्वारा मनमाने रूप से नैसर्गिक न्याय के सिधान्तों के विपरीत प्राचार्य का निलम्बन द्वेषपूर्ण मानसिकता का जीवंत प्रमाण है।