चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट (MADRAS HIGH COURT) ने केन्द्र सरकार ने पूछा है कि क्यों नहीं सरकार एक कानून (LAW) बनाए, जिसमें महिलाओं के लिए अपने नवजात शिशुओं (NEW BORN BABY) को स्तनपान (BREASTFEEDING) कराना अनिवार्य हो। कोर्ट ने मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लिव) से संबंधित याचिका पर केंद्र और तमिलनाडु सरकार से 15 सवाल पूछे हैं। अदालत ने कहा कि न सिर्फ नवजातों को बल्कि ‘पुनर्जीवन पाने वाली’’ माताओं को भी ‘‘देखभाल, प्यार और उचित आराम’’ की जरूरत होती है। कोर्ट ने कहा है कि नवजात को हर मां छह महीने तक अपना दूध जरूर पिलाए।
अदालत ने एक याचिका पर केंद्र और राज्य सरकार को पक्षकार बनाते हुए स्तनपान के महत्व पर बल दिया। अदालत ने कहा कि मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है और ‘‘यहां तक कि तथाकथित पवित्र अमृत भी इसकी बराबरी नहीं कर सकता है।’’ एक महिला सरकारी चिकित्सक की याचिका पर अपने हालिया अंतरिम आदेश में न्यायमूर्ति एन किरूबाकरन ने प्रतिवादियों से 15 सवालों का जवाब देने को कहा।
उस महिला चिकित्सक को इस आधार पर स्नातकोत्तर (पीजी) मेडिकल पाठ्यक्रम में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई थी कि उसने मातृत्व अवकाश को छोड़कर दो साल की अनवरत सेवा पूरी नहीं की थी। (RIGHT TO BREASTFEEDING)