नई दिल्ली। विवादित फिल्म पद्मावत (CONTROVERSIAL FILM PADMAVAT) को लेकर SUPREME COURT ने बड़ा फैसला (DECISION) दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सेंसर बोर्ड ने इसे पूरे भारत में प्रदर्शित (RELEASE) करने की अनुमति दी है अत: अब कोई भी राज्य इसे बैन (BAN) नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की है। वो इससे पीछे नहीं हट सकते। बता दें कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात सहित कई भाजपा शासित राज्यों में इस फिल्म को बैन कर दिया गया था। कोर्ट ने सभी प्रतिबंधों पर स्थगन आदेश जारी कर दिया है। श्री राजपूत करणी सेना इस फिल्म का विरोध कर रही है। उसने फिल्म रिलीज होने की स्थिति में हिंसक आंदोलन करने एवं राजपूत महिलाओं ने जौहर करने का ऐलान किया है।
फिल्म के प्रड्यूसर और डायरेक्टर की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व AG मुकूल रोहतगी ने मामले की पैरवी की। वहीं फिल्म को बैन करने वाले राज्यों की ओर ASG तुषार मेहता ने कानून व्यवस्था की दुहाई देते हुए इसपर बैन की मांग की। हरीश साल्वे ने दलील दी कि सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म को पूरे देश में रिलीज के लिए सर्टिफिकेट दिया है कोई राज्य इसपर बैन कैसे लगा सकता है।
फिल्म पर बैन संघीय ढांचे का उल्लंघन होगा: साल्वे
सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट दिखाते हुए साल्वे ने दलील दी कि सेंसर बोर्ड सेन्ट्रल ऐक्ट , सिनेमैटेग्राफ ऐक्ट 1952 के तहत फिल्मों को सर्टिफिकेट देता है। ऐसे में कोई राज्य उसे मानने से कैसे इनकार कर सकता है। साल्वे ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो यह संघीय ढांचे का उल्लंघन होगा। साल्वे ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) में दिए गए विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए कहा कि फ़िल्म पर बैन लगाना संविधान का उल्लंघन है।
राज्यों की तरफ से दी गई कानून-व्यवस्था की दलील
राज्यों की ओर से बैन की मांग करने वाले तुषार मेहता ने दलील दी कि क़ानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेवारी है और राज्य को यह देखना है कि कानून व्यवस्था को कोई दिक्कत न हो। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस फ़िल्म के रिलीज से कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है। तुषार मेहता ने सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट पर दलील देते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड फ़िल्म को सर्टिफिकेट देते समय इस बात पर ध्यान नहीं देता कि फिल्म की रिलीज से कानून-व्यवस्था को कोई समस्या हो सकती है।
जब आया महात्मा गांधी का जिक्र
राज्यों की तरफ से पेश हुए ASG तुषार मेहता ने कहा कि इस फ़िल्म में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है। इस पर हरीश साल्वे ने फिल्म में दिखाए जाने वाले डिस्क्लेमर को कोर्ट के सामने पढ़कर सुनाया, जिसमें कहा गया है कि 'यह एक काल्पनिक कहानी पर आधारित है', इतिहास से इसका कोई लेना देना नहीं।
साल्वे ने तो कोर्ट में यहां तक कहा कि 'एक दिन मैं चाहूंगा कि मैं इस बात पर दलील दूं कि कलाकारों को इतिहास से छेड़छाड़ का अधिकार भी होना चाहिए।' इस पर तुषार मेहता ने कहा कि 'ऐसा नहीं हो सकता। आप महात्मा गांधी को विस्की पीते हुए नहीं दिखा सकते।' इसपर साल्वे ने कहा ' लेकिन ये इतिहास से छेड़छाड़ नहीं होगी।' इस पर कोर्ट में मौजूद सभी लोग हंस पड़े।