नई दिल्ली। भारत में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लड़ाई के केवल 2 ही मुख्य कारण थे। एक बेतहाशा और कड़े दंड प्रावधान वाले टैक्स 'लगान' और दूसरा अभिव्यक्ति की आजादी। अंग्रेजी शासन में यदि आप सरकार या सरकारी नीतियों की निंदा करते हैं तो आपको जेल में डाल दिया जाता था। आंध्रप्रदेश से अलग हुए नए राज्य तेलंगाना में वैसा ही कुछ होने वाला है। अब सरकार की आलोचना करने पर आपको जेल जाना पड़ सकता है। राज्य सरकार एक ऐसे कानून संशोधन करने जा रही है, जिसके तहत सरकार की निंदा करने वालों, विरोध करने वालों और सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को पुलिस गिरफ्तार कर सकेगी। कानून के अस्तित्व में आने के बाद किसी की सीधे गिरफ्तारी हो सकेगी और इसके लिए पुलिस को कोर्ट से इजाजत लेने की भी जरूरत नहीं होगी।
IPC में संशोधन पर विचार
जानकारी के मुताबिक तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव की सरकार भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506 और 507 को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाने जा रही है। उक्त धाराओं के तहत आरोप का गठन होने पर किसी संस्थान या शख्स के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है।
क्या है धारा 506 और धारा 507
भारतीय दंड संहिता की धारा 506 (आपराधिक धमकियों) और धारा 507 के तहत आरोप का गठन किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा (सोशल मीडिया, चिट्ठी या ईमेल से) आपराधिक धमकी देने पर किया जाता है। दोनों ही धाराओं के तहत आरोपी व्यक्ति को कम से कम 2 साल की और अधिक से अधिक 7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
SC ने पुष्ट की है अभिव्यक्ति की आजादी
बता दें कि तेलंगाना सरकार का ये कदम वर्ष 2015 के दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा श्रेया सिंघल मामले की याद दिलाता है, जिसके कारण आईटी अधिनियम की धारा 66(A) पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था। इस मामले में श्रेया सिंघल ने संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) यानि अभिव्यक्ति की आजादी के हनन के खिलाफ मुहिम चलाई थी।
मार्च, 2015 में मिली थी 'आजादी'
देश में सोशल नेटवर्किंग साइट पर खुलकर अपनी बात कह सकने की पैरवी करते हुए श्रेया ने आईटी अधिनियम की धारा 66 (A) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लंबी सुनवाई के बाद बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट के सेक्शन 66 (A) को खत्म कर दिया था।
अभी सिर्फ एक प्रस्ताव है !
हालांकि, संवैधानिक मामलों के जानकार डॉ. टीके विश्वनाथन के मुताबिक, आईपीसी में इस तरह के संशोधन तब तक कानून का रूप नहीं ले सकते, जब तक कि इसे केंद्र सरकार और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल जाती। ऐसे में तेलंगाना सरकार का ये फैसला फिलहाल कानून नहीं कहा जाएगा, ये अभी सिर्फ एक प्रस्ताव है।
राज्य सरकार को लेनी होगी अनुमति
लोकसभा महासचिव रह चुके डॉ. विश्वनाथन के मुताबिक, "ये सभी मामले संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को है। संविधान के आर्टिकल 254 के मुताबिक, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में केंद्र सरकार की सहमति मिलने के बाद ही राज्य सरकार ऐसे संशोधनों को पास कर सकती है।