
साल 2010 में फैमिली कोर्ट ने तानों को तलाक का आधार ना मानते हुए तलाक याचिका को नामंजूर कर दिया था। फैमिली कोर्ट के फैसले को शख्स ने मुंबई हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में जस्टिस केके तातेड़ और जस्टिस एसके कोटवाल की डिविजन बेंच ने तलाक की मंजूरी प्रदान कर दी। कोर्ट में दायर याचिका में पति ने आरोप लगाया था कि उसकी 56 साल की पत्नी ने उसके साथ कभी अच्छा बर्ताव नहीं किया। उसके खिलाफ बिना सबूत तमाम शिकायतें कीं, जो क्रूरता की श्रेणी में आता है।
उक्त वरिष्ठ नागरिक ने यह भी आरोप लगाया था कि गर्भ धारण न कर पाने के लिए भी उसकी पत्नी उसे ही दोषी ठहराती। दोनों की शादी 1972 में हुई थी, लेकिन लगातार झगड़ों और तनातनी के कारण वे 1993 से अलग रह रहे थे। कोर्ट ने हालांकि पति से अपनी तलाकशुदा पत्नी को हर महीने खर्च देते रहने का निर्देश दिया और जिस फ्लैट में महिला रहती है, उसे लेकर भी विवाद न करने को कहा है।