भोपाल। यह तो एक तरह का घोटाला हो गया। किसानों के साथ ठगी है, जो सरकारी सहायता से की जा रही है। तमाम कंपनियों ने मिलकर एक समूह बना लिया। किसानों से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर प्रीमियम वसूल लिया लेकिन क्लेम नहीं दिया। इस योजना के तहत किसान एकतरफा पिस रहा है। बैंक उसके खाते से प्रीमियम के पैसे कटाकर कंपनी को दे देते हैं परंतु कंपनी किसान को पावती तक नहीं देती। किसान को पता ही नहीं होता कि बीमा के फीचर्स क्या हैं। बीमा कंपनी किसान से बात ही नहीं करती। जब क्लेम की बारी आती है तो नियमों में उलझाकर क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है।
कंपनियां किसानों से संवाद ही नहीं करतीं
पत्रकार गुरुदत्त तिवारी की रिपोर्ट के अनुसार सभी बीमा कंपनियां स्टेट लेवल बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) में शामिल बैंकों के नेटवर्क पर ही काम करती हैं। एसएलबीसी की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चलाने वाली बीमा कंपनियों के कामकाज पर सवाल उठाए हैं। यह रिपोर्ट 8 फरवरी को वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में पेश की गई थी, जिसमें कहा गया है कि किसान और कंपनियों के बीच कोई संवाद ही नहीं है।
प्रीमियम की पावती तक नहीं देतीं कंपनियां
रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 जिलों में काम कर रही सरकारी क्षेत्र की एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी को हर साल खरीफ के सीजन में 1200 करोड़ और रबी के सीजन में 600 करोड़ रुपए यानी 1800 करोड़ रुपए का प्रीमियम मिलता है, लेकिन इसके एवज में उसने वित्तीय वर्ष 2016 में महज 714 करोड़ रुपए का ही क्लैम बांटा। इसी तरह दूसरी कंपनियां एचडीएफसी एर्गो और आईसीआईसीआई लोंबार्ड भी किसानों से बैंकिंग नेटवर्क के जरिए प्रीमियम तो कलेक्ट कर लेती हैं, लेकिन प्रीमियम मिला की नहीं यह बताना तक जरूरी नहीं समझतीं।
किसान को फीचर्स नहीं बताए जाते
सीहोर जिले में तिलरिया गांव के किसान उत्तम सिंह ने बीमा प्रीमियम में 1342 रुपए जमा किए। उनके दो एकड़ खेत में खड़ी सोयाबीन की फसल खराब हो गई। इसके एवज में उन्हें बीमा कंपनी से महज 17 रुपए का ही मुआवजा मिला।
किसानों के क्लेम रिजेक्टर कर देती हैं कपंनियां
बीमा कंपनियों का किसानों से कोई संपर्क नहीं है। इससे किसानों को पता नहीं होता कि उनकी कितनी फसल का बीमा है। किसानों को पॉलिसी के कोई भी दस्तावेज नहीं दिए जाते। क्लेम का हकदार ने के बाद भी कई किसानों को कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों और समय सीमा में उलझाकर क्लेम अस्वीकार कर दिए जाते हैं।
रिपोर्ट में सभी पहलुओं का समावेश किया गया है। बीमा कंपनियों के कामकाज मौजूदा तौर-तरीकों में काफी बदलाव की जरूरत है। अन्यथा इस योजना का उद्देश्य कभी पूरा नहीं होगा।
अजय व्यास, समन्वयक, लीड बैंक, मध्यप्रदेश
वित्तीय वर्ष-16-17 में करीब 1800 करोड़ रुपए का बीमा प्रीमियम मिला। बीमा कंपनियां बैंकों के साथ मिलकर काम करती हैं। जो सवाल उठाए गए हैं, उसका जवाब बना रहे हैं।
अनुपमा ठाकुर, क्षेत्रीय मैनेजर, एआईसी, मप्र