
इस साल भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सेना को 2,79,305 करोड़ रु. का बजट दिया है, जिसका बड़ा हिस्सा तनख्वाह और पेंशन में खप जाएगा. बजट में 93,982 करोड़ रु. यानी 34 फीसदी रकम पूंजीगत खर्चों के लिए दी गई है और 1,85,323 करोड़ रु. यानी 66 फीसदी रकम राजस्व मद में जाएगी. अहम बात यह है कि बजट में दी गई रकम के आंकड़ों में रक्षा पेंशन के लिए रखे गए 1,08,853 करोड़ रु. शामिल नहीं हैं. इसे इस तरीके से ज्यादा अच्छी तरह समझा जा सकता है कि पेंशन पर देश का खर्च पिछले साल पाकिस्तान के कुल 8 अरब डॉलर (51,000 करोड़ रु.) के रक्षा बजट से दोगुना है.
रक्षा बजट में बढ़ोतरी से देश के सुरक्षा बलों को अपने इस पसोपेश से उबरने में मदद मिलेगी, पर राजस्व और पूंजी के बीच 60रू40 का आदर्श अनुपात लाने के लिए भी पूंजीगत बजट में 29,000 करोड़ रु. से ज्यादा के इजाफे की जरूरत है. कम बढ़ोतरी के पिछले रुझानों और सरकार के दूसरे जरूरी खर्चों को देखते हुए इसकी कोई उम्मीद नजर नहीं आती.
इस साल के बजट में पिछले साल के मुकाबले 7.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और नए हार्डवेयर की खरीद के लिए पूंजीगत बजट में 7,000 करोड़ रुपए ज्यादा मिले हैं. रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान के लक्ष्मण बेहरा कहते हैं, ''असल में यह बढ़ोतरी नाम मात्र की है और यह सशस्त्र बलों को आधुनिक और कामकाज के लिहाज से शायद ही पर्याप्त हो."
नतीजाः बड़ी और महंगी खरीदों के लिए जेब में कम रकम होगी. रक्षा बलों को आधुनिक बनाने के पिछले अटके हुए काम—जरूरी हेलिकॉप्टर, विमान और पनडुब्बियों की लंबी फेहरिस्त—तकरीबन 400 अरब डॉलर के आसपास आंके गए हैं. सशस्त्र बलों का कहना है कि उन्हें हार्डवेयर की जरूरत चीन और पाकिस्तान के साथ दो-मोर्चों की लड़ाई के खतरे के लिए है, जिनसे देश की 4,000 किमी से ज्यादा लंबी अशांत सरहद जुड़ी हुई है.
जेटली ने लगातार दूसरे साल अपने भाषण में रक्षा बजट के खाके का कोई जिक्र नहीं किया और इसकी कोई वजह सामने नहीं आई है. इसकी बजाए उन्होंने कुछ प्रस्तावों—मसलन, अरुणाचल प्रदेश में सेला दर्रे मंम पश्चिम कामेंग जिले के बोमडिला कस्बे और तवांग को जोडऩे वाली सुरंग के निर्माण की नई परियोजना—का खाका पेश किया.
यह सुरंग बोमडिला-तवांग के रास्ते को हर मौसम में कारगर सड़क में बदल देगी. उन्होंने दो नए रक्षा औद्योगिक उत्पादन गलियारों (एक चेन्नै-बेंगलूरू है, दूसरे का ऐलान बाकी है) और एक नई रक्षा उत्पादन नीति का ऐलान किया.
इस नीति का ऐलान घरेलू रक्षा मैन्युफैक्चरिंग में नई जान फूंकने के इरादे से 2011 में यूपीए सरकार ने किया था, पर एनडीए ने इसे ताक पर रख दिया था. सरकार को इस पर दोबारा सोचना पड़ा क्योंकि उसे अपने मेक इन इंडिया कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए एक न एक ढांचे की जरूरत है.
डिफेंस इनोवेटर्स ऐंड इंडस्ट्री एसोसिएशन के चेयरमैन और टाटा पावर एसईडी के सीईओ राहुल चौधरी कहते हैं, ''प्रोजेक्ट बनाने के लिए ''मेक इन इंडिया—डिफेंस" में सिर्फ 141.82 करोड़ रु. देना बेतुका मजाक है." रक्षा क्षेत्र में अच्छे इरादों-नीतियों को अमल में लाना सरकार की दुखती रग बना हुआ है.