
राहु का अंक 4 और सूर्य चंद्र का नक्षत्र-इस बार शिवरात्रि 13 तारीख को है। जिसका योग 4 होता है जो की राहु का अंक होता है, राहु भगवान शिव के अलावा किसी भी देव से नही मानता, इसीलिये यदि आपको कालसर्प, ग्रहण योग, सर्प दोष, शापित दोष या राहु की बुरी दशा है तो 13 तारीख की पूर्ण रात्रि शिव चालीसा, रुद्राष्टक, शिवमहीम्न स्त्रोत के साथ राहु कवच राहु स्त्रोत का पाठ करना चाहिये, आपको निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा,शिवकृपा होगी।
सूर्य चंद्र का नक्षत्र-इस शिवरात्रि का संकल्प सूर्य के नक्षत्र उतरा फाल्गुनी और समापन चंद्र के नक्षत्र श्रवण मॆ होगा, जो की भगवान शिव के दोनो नेत्र है,जो सृष्टि की आत्मा और मन है इसीलिये इस शिवरात्रि किया गया भजन पूजन आपको विशेष रूप से फलदायी होगा।
इन बातों का ध्यान रखें
भगवान शिव भोले भंडारी तथा महाकाल प्रलयकारी भी हैं, वे जरा सी पूजा में प्रसन्न हो जाते हैं, सो भोले कहलाए। कुछ चूक हो जाए तो भाले के समान भी हैं। क्रोध के कारण रौद्र रूप भी धारण कर लेते हैं। हिन्दू धर्म में प्रत्येक देवी-देवता की पूजा की अलग-अलग पद्धतियां हैं। पूजा में अलग-अलग सामग्री का उपयोग किया जाता है। कुछ सामग्री ऐसी होती हैं, जिनका प्रयोग करना उलटा परिणाम भी दे सकता है। ऐसा भगवान शिव के साथ भी है। सभी जानते हैं कि भोलेनाथ को बेलपत्र, भांग, धतूरा आदि प्रिय हैं, कुछ सामग्री ऐसी है जो भगवान शिव को अर्पित नहीं करनी चाहिए।
केतकी का फूल
इस बारे में एक प्रसंग है। दरअसल, एक दिन भगवान विष्णु और ब्रह्म देव के बीच देवसभा मॆ इस बात पर विवाद हुआ की श्रेष्ट कौन,इसी बीच ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव प्रकट हुए। शिव ने श्रेष्ठता का निर्णय करने लिये ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत का पता लगाने को कहा। दोनों में से जो भी इसका जवाब दे देगा वह श्रेष्ठ होगा। इसके बाद भगवान विष्णु ज्योतिर्लिंग के अंत की ओर बढ़ चले, लेकिन छोर का पता लगाने में नाकाम रहे और अपनी हार स्वीकार कर ली। उधर, ब्रह्मा जी ऊपर की ओर बढ़े। इस दौरान उन्होंने एक झूठी कहानी रची। वे अपने साथ केतकी के फूल को भी ले गए थे। उससे उन्होंने साक्ष्य देने के लिए कहा था। वापस आकर ब्रह्मा जी भगवान शिव से कहा कि उन्होंने ज्योतिर्लिंग के अंत का पता लगा लिया है और केतकी के फूल ने भी उनके झूठ को सच करार दे दिया। फिर क्या था, ब्रह्मा के इस झूठ से शिव क्रोधित हो गए,उनके आदेश से भैरव जी ने जिस मुख से झूठ बोला था वह सिर काट दिया और श्राप भी दिया कि उनकी कभी कोई पूजा नहीं होगी। तब से महादेव ने केतकी के फूल को भी श्राप दिया। कहा- उनके शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा।
तुलसी-
शिवपुराण के अनुसार असुर जलंधर की एक कहानी है। उसे वरदान था कि जब तक उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता रहेगी, तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता। लिहाजा देवताओं के बहुत आग्रह पर भगवान विष्णु ने उसका पतिव्रत धर्म नष्ट करने की सोची। वे जलंधर का वेष धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए। इसी से वृंदा का पतिधर्म टूट गया और भगवान शिव ने असुर जलंधर का वध कर उसे भस्म कर दिया। वृंदा जो तुलसी में परिवर्तित हो चुकी थीं, को इस घटना ने बेहद निराश कर दिया। उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया। शिव की पूजा में अपनी पत्तियों के उपयोग पर रोक लगा दी।
हल्दी-
शिवलिंग पर कभी हल्दी नहीं चढ़ाई जाती, क्योंकि वह स्वयं शिव का रूप है, इसलिए हल्दी को निषेध किया गया है।
सिंदूर या कुमकुम-
विवाहित महिलाओं का गहना है सिंदूर या कुमकुम। स्त्रियां अपने पति के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए सिंदूर लगाती हैं। इसके उलट महादेव त्रिदेवों में विनाशक हैं। विंध्वसक की भूमिका निभाते हैं, लिहाजा सिंदूर से उनकी सेवा करना अशुभ माना जाता है।
- शिवलिंग के पास गौरी और भगवान गणेश की प्रतिमा अवश्य रखें। अकेले शिवलिंग न रखें।
- शिवालयों में आपने देखा होगा कि शिवलिंग पर जलधारा हमेशा बरकरार रहती है। ऐसे में अगर आप घर पर शिवलिंग की स्थापना करते हैं, तो जलधारा को भी बरकरार रखें। अन्यथा जलधारा न होने पर वह नकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करेगी।
- शिवलिंग को घर लाते समय यह जरूर ध्यान रहे कि उस पर नाग लिपटा हो। शिवलिंग सोना, चांदी या तांबे का हो तो अति उत्तम।
यह कभी न करे-भगवान शिव विष्णु को अपना तथा विष्णु उन्हे अपना इष्ट मानते है,शिवभक्ति का फल विष्णुभक्ति है,रामायण मॆ सती ने इस बात पर शंका की फलस्वरूप उन्हे शिव ने त्याग दिया और उन्हे सती होना पड़ा,बाद मॆ पार्वती रूप मॆ शिव से विवाह किया और रामकथा का श्रवण शिवमुख से किया इसीलिये हरिहर मॆ भेद भूलकर भी न करें।
*प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
9893280184,7000460931