भोपाल। आर्मी से अच्छा आरएसएस विवाद में कल तक संघ के नेता सफाई दे रहे थे परंतु आज केंद्रीय मंत्री एवं संघ की ओर से राजनीति में भेजी गईं साध्वी उमा भारती ने मोहन भागवत के बयान का एक तरह से समर्थन किया है। उन्होंने बताया कि आजादी के बाद पाकिस्तान ने भारत पर अटैक किया था, तो तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आरएसएस से मदद मांगी थी। उन्होंने यह भी कहा कि स्वयंसेवक मदद के लिए वहां पहुंचे भी थे। माना जा रहा है कि उन्होंने मोहन भागवत के उस बयान का समर्थन किया जा है, जिसमें उन्होंने आरएसएस को आर्मी से ज्यादा अनुशासित संगठन बताया था।
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, उमा ने यहां पत्रकारों से बातचीत में भागवत के बयान पर सीधे तौर पर कुछ कहने से इनकार कर दिया। हालांकि, उन्होंने कहा कि आजादी के बाद कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के विलय के लिए होने वाली संधि पर दस्तखत नहीं कर रहे थे और शेख अब्दुल्ला इसके लिए उन पर दबाव बना रहे थे। नेहरू दुविधा में थे। तभी पाकिस्तान ने अचानक हमला कर दिया और उसके सैनिक उधमपुर तक पहुंच गए।
उमा ने आगे कहा कि हमला अचानक किया गया था और सेना के पास इतने आधुनिक संसाधन नहीं थे कि वे वहां तक पहुंच सके। ऐसे वक्त में नेहरू जी ने गुरु गोलवलकर (तत्कालीन आरएसएस चीफ एमएस गोलवलकर) को स्वयंसेवकों की मदद के लिए लेटर लिखा था। स्वयंसेवक जम्मू-कश्मीर में मदद के लिए गए भी थे।
क्या कहा था मोहन भागवत ने?
मोहन भागवत ने 11 फरवरी को मुजफ्फरपुर में कहा था, "अगर ऐसी स्थिति पैदा हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयंसेवक मोर्चे पर जाने को तैयार हैं। जिस आर्मी को तैयार करने में 6-7 महीने लगते हैं, संघ उन सैनिकों को 3 दिन में तैयार कर देगा। संघ न तो मिलिट्री और न ही पैरामिलिट्री संगठन है, ये एक पारिवारिक संगठन है। यहां सेना जैसा ही अनुशासन है। आरएसएस वर्कर्स हमेशा देश के लिए जान न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं।
1962 में भारत-चीन जंग के दौरान जब सिक्किम के तेजपुर से सिविलियंस और पुलिस अफसर भाग गए थे, तब वहां सेना के पहुंचने तक स्वयंसेवक डटे रहे। स्वयंसेवकों ने फैसला किया था कि चीनी आर्मी को बिना कोई विरोध किए भारतीय सीमा में घुसने नहीं देंगे। स्वयंसेवक हर उस काम को पूरा करते हैं, जो उन्हें दिया जाता है।